चीन भारत के पड़ोसी देशों के सामने कितना असहाय है, इसका बेहतरीन उदाहरण नेपाल है


भारत के पड़ोस में हमेशा चीन अपना प्रभुत्व बढ़ाने की फिराक में रहता है ताकि भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर वह अपने हितों को बढ़ावा दे सके। उदाहरण के लिए पिछले कुछ सालों में चीन मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसी देशों को अपनी मुट्ठी में करने की भरपूर कोशिश कर चुका है। मालदीव में अब्दुल्लाह यामीन सरकार को अपने खेमे में करके वर्ष 2018 तक चीन इस Island country की विदेश नीति अपना शत प्रतिशत कब्जा जमा चुका था। इसी के साथ चीन श्रीलंका को भी अपने कर्ज़ जाल में फंसा चुका था। हालांकि, दोनों ही देश अब भारत की सहायता से चीन के जाल से बाहर आने में सफल हुए हैं। इसी कड़ी में अब नेपाल भी धीरे-धीरे चीनी प्रभाव से मुक्त होकर दोबारा भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने के प्रयासों में जुट चुका है।

बता दें कि नेपाली सरकार ने अब ऐलान किया है कि वह जल्द ही अपनी नई विदेश नीति को जारी कर सकता है, जिसके तहत नेपाल अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में Nepal की सम्मानजनक स्थिति को सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करेगा। नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने यह ऐलान ऐसे समय में किया है जब चीन के साथ नेपाल का सीमा विवाद जारी है और हाल ही में चीनी मीडिया ने बॉर्डर विवाद के लिए नेपाली अधिकारियों को ही जिम्मेदार ठहराया है। बता दें कि पिछले हफ्ते ही नेपाल के हुम्ला ज़िला में चीन ने अवैध तरीके से कब्जा कर मुआयना करने आए नेपाली अधिकारियों पर ही आंसू गैस से हमला बोल दिया था।

चीन के साथ “दोस्ती” का खामियाजा Nepal को अब भुगतना पड़ रहा है और यही कारण है कि अब नेपाली सरकार भारत सरकार के साथ दोबारा रिश्ते बेहतर करने के प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए हाल ही में ओली सरकार ने भारत विरोधी रक्षा मंत्री और उप-प्रधानमंत्री ईश्वर पोखरेल को अपने पद से हटा दिया था। इसके अलावा नेपाल ने हाल ही में उन स्कूली किताबों को भी वापस मंगा लिया था, जिनमें भारत के कालापानी और लीपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। स्पष्ट है कि चीनी “दोस्ती” से Nepal का पेट भर चुका है, और अब वह दोबारा भारत की शरण में आने की तैयारी कर रहा है।

यह कोई नयी बात नहीं है। भारत के पड़ोस में चीन वर्षों से ऐसा करता आया है और फिर हर जगह मुंह की खाता आया है। मालदीव, श्रीलंका इसके सबसे बेहतर उदाहरण हैं। मालदीव में चीन-परस्त अब्दुल्ला यामीन की सरकार जाते ही चीन के लिए सब बदल गया, इसी के साथ श्रीलंका में राजपक्षे परिवार पहले की तरह चीन की तरफ झुकने की बजाय भारत के साथ बेहतर सहयोग करने के लिए मजबूर हुआ है।

अब नेपाल में जो हुआ है, उसमें चीन के लिए एक बड़ा संदेश छुपा है। चीन को यह समझ लेना चाहिए कि भारत के पड़ोस में ही वह भारत को अलग-थलग करने के सपने को पूरा करने की स्थिति में बिलकुल नहीं है। भारत एक बड़ी सैन्य शक्ति और बड़ी आर्थिक शक्ति होने के साथ-साथ एक बड़ा लोकतान्त्रिक देश भी है, जिसका सिर्फ अपने पड़ोस में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में वर्चस्व स्थापित है। भारत के पड़ोसी देश कभी चीन का पक्ष कतई नहीं लेना चाहेंगे, क्योंकि पाकिस्तान को छोड़कर सभी पड़ोसियों के साथ भारत के बेहद मजबूत आर्थिक संबंध हैं। चीन अब बांग्लादेश में भी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटा है।

हाल ही में चीन-बांग्लादेश के बीच एक व्यापारिक समझौता हुआ था जिसके तहत चीन में बांग्लादेश के 97 प्रतिशत सामानों को tax-free कर दिया गया था। हालांकि, अपने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर पीएम मोदी को आमंत्रित कर बांग्लादेश भी चीन को यह संदेश देना चाहता है कि उसके लिए नई दिल्ली आज भी बेहद महत्वपूर्ण साझेदार है।

ऐसे वक्त में जब भारत Quad देशों के साथ मिलकर चीन के पड़ोस ASEAN में चीन की पकड़ कमजोर करने की दिशा में काम कर रहा है, चीन भारत के पड़ोस में भारत के लिए मुश्किलें खड़ा करने के लिए प्रयासरत है। लेकिन नेपाल और बांग्लादेश के इरादों से यह स्पष्ट हो गया है कि अब भारत के पड़ोसी, चीन के जाल में नहीं फंसने वाले!

आपको ये पोस्ट कैसी लगी नीचे कमेंट करके अवश्य बताइए। इस पोस्ट को शेयर करें और ऐसी ही जानकारी पड़ते रहने के लिए आप बॉलीकॉर्न.कॉम (bollyycorn.com) के सोशल मीडिया फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम पेज को फॉलो करें।

0/Post a Comment/Comments