आने वाले कुछ महीनों में करीब एक ट्रिल्यन डॉलर से अधिक गंवा सकता है चीन


कोरोना चीन के लिए एक मीठे जहर की तरह काम कर रहा है। पहले विश्व भर के देशों के साथ राजनयिक संबंध तो खराब हुए ही, अब उसका कर्ज के रूप में दिया गया रुपया भी डूब रहा है। Harvard Business Review के अनुमान के मुताबिक आज के दौर में चीन ने विश्व भर के लगभग 150 देशों में 1.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक ऋण दे कर रखा है और कोरोना के कारण तबाह हुए अर्थव्यवस्थाओं के कारण अब चीन का सारा कर्ज डूब सकता है जिसकी शुरुआत अफ्रीका से हो भी चुकी है।

दरअसल, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का खूब प्रचार-प्रसार हुआ और इस परियोजना के तहत विश्व के अलग-अलग देशों में निवेश के लिए लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर ऋण बांटें गए परंतु अब यही परियोजना चीन के लिए सबसे बड़ी लायबलिटी बन चुकी है।

अफ्रीका से लेकर दक्षिण एशिया और ओशिनिया तक दुनिया भर के देश चीनी कर्ज चुकाने से पीछे हटने के संकेत दे रहे हैं। जबकि उनमें से कुछ ऋण निलंबन की मांग कर रहे हैं तो वहीं अन्य देश ऋण का भुगतान न कर पाने की स्थिति में हैं और कुछ अन्य चीनी ऋण का भुगतान करने से डंप करने की कोशिश कर रहे हैं।

चीन ने दुनिया भर को अपने पैरो तले लाने के लिए BRI शुरू किया था लेकिन आज यही उस पर इतना बड़ा बोझ बन चुका है कि चीन को झुकने पर मजबूर कर रहा है।

शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड में दिये गए ऋण के डूबने के कई कारण हैं जिसमें से अधिकतर चीन की ही देन है। कोरोना के कारण आई वैश्विक आर्थिक मंदी ने कई देशों को चीनी ऋण चुकाने में असमर्थ बना दिया है, जबकि अन्य चीन के खिलाफ चल रहे चीन विरोधी माहौल का फायदा उठाना चाहते हैं।

इसके अलावा, शी जिनपिंग प्रशासन लगातार यह दावा करता रहा है कि वुहान वायरस महामारी के कारण चीनी आर्थिक विकास काफी हद तक अप्रभावित रहा है। इसलिए, BRI के तहत लोन पाने वालों को चीन से ऋण-माफी की मांग करने का एक और बहाना मिलता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी महाद्वीप, जहां कई देश चीनी ऋण को निलंबित करने में कामयाब रहे हैं। अफ्रीकी देशों पर अकेले चीन का ही करीब 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है लेकिन अब वैश्विक दबाव के कारण चीन ने अफ्रीकी देशों को दिये गए ब्याज-रहित कर्ज को माफ करने की घोषणा की है।

संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और UK जैसी G20 शक्तियों के दबाव में, विश्व बैंक ने चीनी अधिकारियों को Debt Service Suspension Initiative के तहत 11 अफ्रीकी देशों के ऋण को निलंबित करने के लिए राजी कर लिया है। जिस तरह से अफ्रीकी देशों ने चीनी कर्ज को हासिल करने में कामयाबी हासिल की है, वह अब अन्य देशों के लिए उदाहरण के तौर पर काम करेगा।

एक तरफ जहां अफ्रीकी देशों ने इस सफलता के लिए कूटनीतिक चालों का इस्तेमाल किया है, तो वहीं पापुआ न्यू गिनी ने चीनी ऋण जाल से निपटने के लिए भयंकर आक्रामक नीति का पालन किया है।

इस साल अगस्त में, पापुआ न्यू गिनी ने चीन के टेलीकॉम दिग्गज हुवावे द्वारा निर्मित नेशनल डेटा सेंटर के लिए चीनी ऋण का भुगतान करने से इनकार कर दिया, जिसमें Export-Import Bank of China. से 53 मिलियन डॉलर का ऋण था।

दरअसल, पापुआ न्यू गिनी को यह पता चल गया था कि चीन उसकी जासूसी करने के लिए इस डेटा सेंटर का उपयोग कर रहा था और इसलिए चीन ऋण को न देने का एक बहाना मिल गया और उसने ऋण देने से मना कर दिया।

यही नहीं, कुछ बीआरआई के सदस्य देश इतनी अधिक मात्रा में ऋण ले चुके हैं और उनकी अर्थव्यवस्था इनती खस्ता हो चुकी है कि वे ऋण देने की आर्थिक क्षमता नहीं रखते हैं। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान जहां चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत कई बिलियन डॉलर का निवेश किया है जो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का ही एक हिस्सा है।

मूल रूप से 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य वाला CPEC की कीमत अब 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है। लेकिन पाकिस्तान के पास चुकाने के लिए पैसे ही नहीं हैं। हाल ही में चीनी बैंकों ने पाकिस्तान में जारी CPEC (China Pakistan Economic Corridor) के लिए नया कर्ज़ देने से मना भी कर दिया था।

ऐसे में अगर चीन को इन देशों को दिया गया सारा कर्ज़ माफ़ करना पड़ता है, तो चीन पर वित्तीय समस्याओं का पहाड़ टूटना तय है। वित्तीय समस्याओं के साथ-साथ चीन द्वारा कर्ज़ माफी करना उसकी debt diplomacy के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है। अगर debt ही नहीं रहेगा, तो चीन की debt-diplomacy कहाँ से चीन के हितों को बढ़ावा दे पाएगी?

वहीं आर्थिक तौर पर देखें तो BRI 70 देशों में फैला एक बहुत बड़ा नेटवर्क है और इस कारण से इसकी विफलता चीन के लिए उससे कहीं अधिक दर्दनाक और घातक होगी। ऐसा लगता है कि चीन के पास वास्तव में कोई विकल्प नहीं है, और वह 1 ट्रिलियन डॉलर के अपने निवेश का एक बड़ा हिस्सा डूबने से नहीं बचा सकता है।

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