निर्वासन में रहकर भी नवाज़ शरीफ पाकिस्तानी सेना को चुनौती दिये जा रहें हैं

 


किसी ने सही ही कहा है, “घायल शेर की सांसें उसकी दहाड़ से भी ज़्यादा खतरनाक होती है।” कुछ ऐसा ही हाल है पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ का, जिंहोने पाकिस्तान से बाहर रहकर भी पाकिस्तानी प्रशासन में खलबली मचा दी है, और अब इमरान खाने के नेतृत्व में पाकिस्तानी प्रशासन के विरुद्ध वह विपक्ष के प्रमुख नेता के तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं।

नवाज़ शरीफ इस समय पाकिस्तानी अदालतों द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण स्वघोषित निर्वासन के अंतर्गत विदेश में अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान में न रहकर भी उन्होंने पाकिस्तानी प्रशासन में खलबली मचा दी है, क्योंकि उन्होने प्रशासन के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना पर भी उंगली उठाई है। शायद इसी का परिणाम है कि नवाज़ शरीफ के एक आह्वान पर पूरा विपक्ष एकजुट हो गया, और नतीजतन कई अहम विपक्षी नेताओं के विरुद्ध पाकिस्तानी सेना और इमरान खान के नेतृत्व में उनका कठपुतली शासन विपक्षी नेताओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के लिए विवश हो गया।

लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर क्या कारण है कि नवाज़ शरीफ ने पाकिस्तान के वर्तमान प्रशासन के रातों की नींद उड़ा रखी है? दरअसल, पाकिस्तान का वर्तमान प्रशासन इस समय दो चीजों पर अपना ध्यान विशेष रूप से केन्द्रित किए हुए हैं – एफ़एटीएफ़ की ब्लैक लिस्ट में जाने से पाकिस्तान को बचाना और पाक अधिकृत कश्मीर, विशेषकर गिलगिट बाल्टिस्तान को आधिकारिक राज्य का दर्जा देना।

तो फिर समस्या किस बात की है? दरअसल, नवाज़ शरीफ के नेतृत्व में विपक्ष ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी प्रशासन अपनी मनमानी कर रहा है और वह असल में सेना के इशारों पर अपना काम कर रहा है। नवाज़ शरीफ पहले भी पाकिस्तानी सेना की गुंडागर्दी का शिकार हो चुके हैं, और इसीलिए उन्होंने सभी विपक्षियों को एकजुट कर पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है, जिससे आने वाले समय में शासन पर सेना का दबाव या तो कम हो, या फिर एकदम ही खत्म हो जाये।

जहां विदेश में नवाज़ शरीफ इस अभियान के लिए आवश्यक समर्थन जुटाना शुरू किया है, तो वहीं पाकिस्तान में रहकर यही काम उनकी बेटी मरियम नवाज़ शरीफ बड़ी कुशलता से कर रही है। मरियम नवाज़ ने जिस प्रकार से पाकिस्तान में विपक्ष को एकजुट करने में एक अहम भूमिका निभाई, उससे इमरान खान की सरकार और पाकिस्तानी सेना दोनों बुरी तरह सकपकाए हुए हैं।

टीएफ़आई पोस्ट द्वारा इसी विषय पर किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार, “पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अवैध रूप से कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान की विधानसभा के लिए होने वाले चुनावों को 15 नवंबर को कराने की मंजूरी दे दी। यह प्रस्ताव किसी और का नहीं बल्कि सेना का था जिसने अवैध रूप से कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में चुनाव के लिए हामी भरी थी। इस पर मरियम नवाज शरीफ ने बिना किसी डर के पाकिस्तानी सेना पर हमला बोला और कहा कि, बैठक को गिलगित बाल्टिस्तान मुद्दे पर बुलाया गया था। गिलगित बाल्टिस्तान एक राजनीतिक मुद्दा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे सरकार के प्रतिनिधियों को निपटना है। ऐसे फैसले संसद में लेने होते हैं न कि GHQ में। मुझे नहीं पता कि नवाज शरीफ इस बैठक के बारे में जानते थे या नहीं। सेना को ऐसे मुद्दे के लिए राजनीतिक नेताओं को नहीं बुलाना चाहिए और न ही राजनीतिक नेताओं को जाना चाहिए था। जो इस पर चर्चा करना चाहता है वह संसद में आ सकते  हैं।

इसके अलावा बाकी विपक्ष ने भी पाकिस्तानी प्रशासन और पाकिस्तानी सेना की हेकड़ी के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाया हुआ है। अभी हाल ही में पाकिस्तान में सेना के खिलाफ एक बड़ी मुहिम छेड़ी जा चुकी है, जिसका नेतृत्व देश की 11 विपक्षी पार्टियां मिल जुलकर कर रही हैं। कहने को तो यह गठबंधन प्रत्यक्ष तौर पर इमरान सरकार को कुर्सी से हटाने के लिए बनाया गया है, लेकिन इन सब पार्टियों का निशाना मुख्यतः पाकिस्तानी सेना ही है, जिसके लगातार राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कोई भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है।

विपक्ष के इस  11-पार्टी सदस्यीय गठबंधन में Pakistan People’s Party, पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़, आवामी नेशनल पार्टी जैसी सभी मुख्य पार्टियां शामिल हैं और ये सभी मिलकर 16 अक्टूबर से लेकर जनवरी महीने तक देश में बड़ा आंदोलन छेड़ने की तैयारी कर रही हैं। कहते हैं निर्वासित सेनाध्यक्ष कभी युद्ध नहीं जीतते, लेकिन निर्वासन में रहकर भी नवाज़ शरीफ पाकिस्तानी प्रशासन और पाकिस्तानी सेना को दिन में तारे दिखाने में पूर्णतया सफल रहे हैं।

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