एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी – अमेरिकी जेट चीन का कभी भी कबाब बना सकती है फिर भी इन्हे अलास्का चाहिए


इस समय प्रतीत होता है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जीवन का एक ही मकसद है – पूरे दुनिया पर चीन का कब्जा। चाहे एलएसी के पूर्वी लद्दाख वाले मोर्चे पर तनातनी को बढ़ावा देना हो, या फिर व्लाडिवोस्टोक पर बिना किसी ठोस साक्ष्य के दावा ठोंकना हो, चीनी प्रशासन जिनपिंग के इस ‘ख्वाब’ को पूरा करने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। लेकिन यह बिलकुल मत सोचिएगा कि चीन इतने पर रुकने वाला है, क्योंकि उसके अरमान तो बहुत दूर-दूर तक पाँव पसारना चाहते हैं। हम सभी इस बात से भली-भांति परिचित है कि चीन किस प्रकार से रूस के पोर्ट शहर व्लाडिवोस्टोक  पर दावा ठोंक रहा है, पर असल में उसकी मंशा कुछ और ही है। व्लाडिवोस्टोक तो बस बहाना है, असल में पूरे आर्कटिक क्षेत्र पर कब्जा जो जमाना है, जिसकी आंच अमेरिका तक भी आ सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब चीन की नज़रें यूएस के सबसे अहम राज्यों में से एक अलास्का पर है।   

अलास्का को रूस से अमेरिका ने 1867 में खरीदा था। तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि बर्फ से ढका हुआ यह राज्य आगे चलकर अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम हो जाएगा। चूंकि आर्कटिक क्षेत्र दिन प्रतिदिन पिघलता जा रहा है, और अलास्का 2044 तक बर्फ मुक्त हो सकता है, इसलिए ये व्यापार और नौसैनिक गतिविधियों के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं होगा। इसीलिए चीन इस क्षेत्र पर कब्जा जमाना चाहता है, क्योंकि ये आर्कटिक क्षेत्र के निकट है, और रणनीतिक रूप से बहुत अहम है।

आर्कटिक से दूर-दूर तक कोई नाता होने के बावजूद चीन अपने आप को ‘Near Arctic State’ घोषित करना चाहता है। लेकिन चीन आर्कटिक पहुंचेगा कैसे? चीनी योजना के अनुसार यदि वह रूस के फार ईस्ट क्षेत्र पर दावा ठोकता है, तो वह बेरिंग स्ट्रेट तक पहुँच सकता है, जो रूस के फार ईस्ट और अलास्का को डिवाइड करता है।

जिस प्रकार से अमेरिकी प्रशासन और चीन में इस समय तनातनी है, उस अनुसार शी जिनपिंग ने जिस प्रकार से अलास्का पर नज़रें गड़ाई है, वो डोनाल्ड ट्रम्प को फूटी आंख नहीं सुहाने वाला। 2017 में जब जिनपिंग अमेरिका पधारे थे, तो वे सिलिकॉन वैली में रुकने के बजाए अलास्का तक गए थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन अलास्का के तेल एवं गैस संबंधी सेक्टर्स में निवेश करना चाहता है, और जब बात निवेश की हो, तो चीन केवल निवेश तक सीमित रहे, ऐसा हो सकता है क्या?

लगभग एक दशक पहले चीन के पर्यटकों की लिस्ट पर अलास्का top priority में कभी नहीं रहा। लेकिन अब चीनी पर्यटकों के लिए अलास्का जाना Top priority में आ चुका है। इसके अलावा 2015 में अलास्का के तट के निकट पेंटागन ने पाँच चीनी जहाजों को खोजा था, जो भ्रमण के इरादे से शायद ही आए थे।

लोगों को विश्वास हो या नहीं, लेकिन ऐसे ही चीन का साम्राज्यवादी मॉडेल काम करता है – पहले निवेश और सॉफ्ट पवार के जरिये क्षेत्र के लोगों का ध्यान खींचो, फिर धीरे-धीरे अपने कर्ज़ के जाल में फंसाओ। यदि वो क्षेत्र चीन के झांसे में न आए, तो समुद्री हमले से या फिर दूसरे देशों के क्षेत्रों पर दावा करके अपना प्रभाव बढ़ाएँ। वुहान वायरस की महामारी की आड़ में इसी योजना को चीन जमकर बढ़ावा दे रहा था।

लेकिन चीन अलास्का पे भी नहीं रुकेगा। चूंकि आर्कटिक की बर्फ अगले कुछ दशकों में काफी हद तक पिघल सकती है, इसलिए अब बीजिंग पूरे आर्कटिक क्षेत्र पर वर्चस्व जमाना चाहता है, ताकि नए शिपिंग लेन के जरिये बीजिंग के Hydrocarbon की समस्या पर लगाम लगाई जा सके। लेकिन अमेरिका भी अब हाथ पर हाथ धरे बैठने वाला नहीं है। 2018 में अलास्का की सत्ता संभालने वाले वर्तमान राज्यपाल माइक डनलीवी ने ‘राष्ट्र के लिए खतरा’ का हवाला देते हुए चीन के साथ होने वाले एक बड़े नैचुरल गैस परियोजना को रद्द कर दिया था।

भले ही अमेरिका और चीन के बीच सभी प्रकार के संबंध रसातल में हो, परंतु बीजिंग अलास्का के साथ व्यापार जारी रखने पर पूरा ज़ोर दे रहा है। जब वुहान वायरस अप्रैल में अपने चरम पर था, तो बीजिंग ने करीब 3 मिलियन डॉलर मूल्य के पीपीई किट विशेष रूप से अलास्का प्रांत को भेजे थे।

अलास्का में अभी जो कुछ भी हो रहा है, वो जल्द ही चीन और अमेरिका के बीच की तनातनी को और उग्र बना सकता है, और यही तनातनी अमेरिका और रूस को भी अधिक निकट ला सकती है। दोनों ही चीन के औपनिवेशिक योजनाओं से त्रस्त हैं, और ऐसे में अलास्का में कम्युनिस्ट चीन के विध्वंस की नींव भी रखी जा सकती है।

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