ये हैं दुनिया की सबसे अनोखी सब्जी, जिसे खाते ही हो जाती है मौत

संयुक्त राज्य या अमेरिका कहा जाता हैं, उत्तरी अमेरिका में स्थित एक देश हैं, यह 50 राज्य, एक फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, पाँच प्रमुख स्व-शासनीय क्षेत्र, और विभिन्न अधिनस्थ क्षेत्र से मिलकर बना हैं।

अमेरिका के समूचे दक्षिण में पोकवीड नाम की ये हरी पत्तियां हमेशा से खाई जाती रही हैं। गलत ढंग से पकाए जाने पर ये जहरीली हो सकती हैं लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा प्रकृति से खाद्य पदार्थ लेने की चाहत में ये पत्तियां हाल ही में फिर से अपनी पैठ बना रही हैं। समूचे अमेरिका में प्रचुर मात्रा में उगने वाला यह जंगली हरा पौधा दक्षिणी न्यूयॉर्क राज्य से उत्तर पूर्वी मिसीसिपी तथा बाकी के दक्षिणी हिस्से में अप्पालेचियाई पहाड़ों के साथ-साथ उगता है। इन पत्तियों से बनने वाले हरे व्यंजन को पोक सैलेट के नाम से लोकप्रियता मिली है। लूजियाना के टोनी जे व्हाइट के 1969 के हिट गाने पोक सलाद ऐनी से इसकी वर्तनी यानी स्पेलिंग पोक सलाद बन गई।

पोक सैलेट क्यों आदत से गायब हो गया था?
अमरीकियों की प्लेट से यह क्यों गायब हो गया और अब यह भोजन में फिर से अपना स्थान कैसे बना रहा है यह समझने के लिए हमने इस पौधे के इतिहास पर नजर डालनी होगी। अप्पालेचिया में पोकवीड कई पीढ़ियों तक लोगों का मुख्य भोजन रहा था। पश्चिमी वर्जीनिया के लॉस्ट क्रीक फार्म में शैफ और किसान माइक कोस्टेलो बताते हैं, “यह एक ऐसा पदार्थ था जो आप तब तक खाते थे जब आप गरीब थे। अब ऐसी बात नहीं रही।” जंगली पौधों को ढूंढकर उनका व्यंजन बनाना लोगों की बढ़ती सुदृढ़ आर्थिक स्थित के साथ ही कम होता चला गया।

कोस्टेलो का कहना है, “पोक सैलेट जैसे व्यंजनों से सम्बद्ध बातें अधिकांशतः शर्म, गरीबी या हताशा भरी हैं, लेकिन मेरे लिए तो कुल मिलाकर मामला बुद्धिमानी और संसाधनों के प्रयोग का है। और इन बातों पर लोग गर्व कर सकते हैं।” यदि आप दक्षिण पूर्वी अमेरिका में रहते हैं तो कुदरती तौर पर आपने पर्याप्त मात्रा में इस पौधे को उगते हुए देखा हो सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि आप इसका नाम जानते हों। साल भर उगने वाला यह सख्तजान पौधा 10 फीट ऊंचा हो सकता है और लगभग कहीं भी फल-फूल सकता है। एक बार पूर्णावस्था प्राप्त करने पर इसके पत्ते काफी निखरकर और बैंगनी रंग में दिखाई देते हैं जिन पर गहरे बैंगनी या काले फल लगे हो सकते हैं। प्रकृति से चुने जाने वाले अन्य खाद्य पदार्थों की तरह पोकवीड के साथ भी एक समस्या है: यदि इसे ढंग से न तैयार किया जाए तो यह जहरीला हो सकता है।

केन्टकी के हार्लान में वार्षिक पोक सैलेट फेस्टिबल की मेजबानी करने वाले सिटी ऑफ हार्लान टूरिस्ट एंड कन्वेंशन कमीशन के कार्यकारी निदेशक ब्रेंडन पेनिंगटन कहते हैं, “वर्षों पहले अप्पालेचिया में कुदरत पर आश्रित रहना बहुत अहम था और हमारे बहुत सारे बुजुर्ग अब भी यह जानते हैं कि आप कुदरत से लेकर क्या खा सकते हैं और क्या नहीं। लेकिन बड़े पैमाने पर होने वाली कृषि और उपलब्ध भोजन के चलते वह कला अब कहीं खो गई है।”

थोड़ी असावधानी से जहरीला बन सकता है

पोक पौधे के फलों को स्याही से लेकर लिपिस्टिक तक लगभग सभी चीजों के लिए प्रयोग किया जाता रहा है (लिपिस्टिक के बारे में डॉली पार्टन ने अपनी प्रेरणादायी पुस्तक ड्रीम मोर : सेलिब्रेट द ड्रीमर इन यू में भी जिक्र किया है), लेकिन इन्हें कभी खाना नहीं है- न तो जड़ों को, न तने को, न बीज को और न ही कच्ची पत्तियों को। हालांकि, आधुनिक युग में पोक सैलेट खाने से किसी की मृत्यु हुई हो, ऐसा मामला तो सामने नहीं आया है लेकिन इस पौधे के विभिन्न हिस्से जहरीले होते हैं और अक्सर इनके फल खाने से बच्चों को बीमार पड़ते देखा गया है।

जंगली अंगूर की तरह दिखने वाले इन फलों को खाने से भीषण पेट दर्द, बढ़ी हुई हृदयगति, उल्टी, दस्त तथा सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है। जैसे-जैसे पोकवीड बड़ा होता है उसके जहर का असर भी बढ़ता है। जड़ों को तो खासतौर से कभी भी नहीं खाना चाहिए। पौधे की पत्तियां सबसे कम जहरीली होती हैं। उसके बाद तने और फलों की बारी आती है। इसीलिए बसंत ऋतु में जब पौधा छोटा होता है, तब उगने वाली उसकी पत्तियों को ही प्रयोग में लाना चाहिए और वह भी अच्छी तरह पकाकर। यहां के स्थानीय अमरीकियों, अफ्रीकी गुलामों और अन्य लोगों ने काफी समय तक इसको पकाने की कला को परिष्कृत किया। तब जाकर इसकी तकनीक समझ आई।

सबसे अच्छा तो ये होगा कि पहले एक-दो बार आप किसी ऐसे के साथ पोकवीड तोड़ने जाएं जो इसके बारे में जानता हो; अन्यथा आप इसे कुछ और ही समझ बैठेंगे। या फिर ऐसा कर सकते हैं कि अपने बैंगनी तने और फलों से अलग से दिखने वाले पूर्ण विकसित पौधे को पहचान कर आप उस जगह को याद कर लें और फिर बसंत ऋतु में वहां तक जाएं जब ये पौधे छोटे और खाने योग्य होते हैं।

पोकवीड बनाने की विधि
बादाम के आकार की चौड़ी पत्तियों को तब तोड़ा जाना चाहिए जब पौधा छोटा और मुलायम हो और इसकी ऊंचाई एक से दो फीट हो। इस समय इसका तना, डंठल तथा पत्तियां कुछ भी बैंगनी नहीं होता। अब इसे पकाने की बारी। सबसे पहले पत्तियों को अच्छी तरह धोने के बाद उबाल लें जिससे इसका जहरीलापन कुछ कम हो जाए। उबालते समय पत्तियां पूरी तरह पानी में डूबी हुई होनी चाहिए। इसके बाद इसे छानकर किसी कल्छुल से दबाकर इसे निचोड़ लें। यही काम तीन बार करना है। उसके बाद एक पैन में सुअर की चर्बी, नमक तथा काली मिर्च मिलाकर इसे हल्की आंच में पकाना है।

इसे पकाने में समय लगता है और पकने के बाद यह बहुत जरा सा रह जाता है जैसा कि बाकी हरी पत्तीदार सब्जियों के साथ होता है। कुछ लोग कहते हैं कि पोक सैलेट का स्वाद पालक या शलगम की पत्ती जैसा होता है जिसमें बाद में खनिज का स्वाद आता है। लेकिन इतना कष्ट उठाए ही क्यों? कोस्टेलो’ का कहना है, “इसमें स्वाद और अन्य सामग्री से कुछ अन्य बातों का प्रतिनिधित्व झलकता है। इसमें आपकी पहचान और उन स्थानों से आपका जुड़ाव भी झलकता है।”

क्या कभी ऐसा होगा कि पोकवीड को भी रैम्प्स यानी जंगली प्याज और शैंटरेल मशरूम जैसा ही लोकप्रिय हो जाए? शायद नहीं। लेकिन कुछ शैफ बड़ी हिम्मत दिखाकर इसे लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं। उत्तरी कैरोलीना के शार्लोट में एयरलूम नामक रेस्तरां के मालिक शैफ क्लार्क बार्लो राज्य के पश्चिमी भाग में पोकवीड के पौधों के बीच में ही बड़े हुए लेकिन उन्होंने कभी इसे पकते हुए नहीं देखा है।

तरह तरह के व्यंजन
वे बताते हैं, “2014 में जब मैंने रेस्तरां खोला तो इसमें मेरी दिलचस्पी फिर से जागी और मैंने अपनी नानी, जिनका नाम नाना है, से इसे बनाने का तरीका पूछा। बस फिर क्या था, मैंने वही तकनीक अपने सहयोगियों को बताई, अच्छे पौधों की पत्तियां तोड़ी और व्यंजन तैयार था।” हर बसंत में, बार्लो एक महीने तक अपने रेस्तरां एयरलूम में इसका व्यंजन बनाते हैं। वे बताते हैं कि रेस्तरां के बगल में ही इन पौधों का एक झुरमुट है और कभी-कभी कुछ ग्राहक एकदम सटीक आकार की पत्तियां अपने जमीन से ले आते हैं।
बेशक, कुछ शैफ इस तरह के जहरीले पौधे से बना व्यंजन परोसने में हिचकिचाएंगे। लेकिन बार्लो को न केवल अपने सहयोगियों पर भरोसा है बल्कि नाना द्वारा बताए गए व्यंजन बनाने के तरीके पर भी भरोसा है। अतीत में उन्होंने इस पौधे के फलों के रस से आइसक्रीम बनाकर भी परोसा है, हालांकि, इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि गलती से भी कोई बीज न पिस जाए।

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