भारत में Amnesty International को अपना ऑफिस बंद क्यों करना पड़ा? भारत सरकार से समझिए


केंद्र सरकार ने हाल ही में Amnesty International के भारतीय ऑफिस से जुड़े बैंक अकाउंट फ्रीज़ कराये, जिसके कारण एमनेस्टी इंटेरनेशनल ये दावा करता हुए अपनी दुकान बंद की कि केंद्र सरकार उसके पीछे हाथ धोके पड़ी हुई है। लेकिन केंद्र सरकार ने Amnesty International के झूठे दावों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने स्पष्टीकरण में एमनेस्टी को बुरी तरह धोया।

पीआईबी द्वारा जारी बयान का शीर्षक ही सरकार के इरादे बताने के लिए पर्याप्त था, “मानवाधिकारों की आड़ में देश के कानून नहीं तोड़े जा सकते।” फिर एक-एक करके केंद्र सरकार ने Amnesty International के करतूतों की अपने बयान में पोल खोलनी शुरू कर दी। केंद्र सरकार के बयान, “एमनेस्टी इंटेरनेशनल ने FCRA के अंतर्गत केवल एक बार स्वीकृति पाई थी, और वो भी 20 वर्ष पहले 2000 में। तब से आज तक Amnesty International को एक बार भी एफ़सीआरए से स्वीकृति नहीं पाया गया है। लेकिन इस अधिनियम से बचने के लिए एमनेस्टी के यूके विभाग ने भारत में पंजीकृत चार संगठनों को भारी मात्रा में पैसे भेजे, जिसे उन्होंने विदेशी निवेश की संज्ञा दी। काफी धनराशि एफ़सीआरए के अंतर्गत गृह मंत्रालय की स्वीकृति के बिना भेजे गए, और ये देश के कानून के विरुद्ध भेजा गया था”

इससे पहले भी Amnesty International को इन्ही कारणों से भारत में अपनी गतिविधियों पर रोक लगानी पड़ी थी, क्योंकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने लंदन में स्थित मुख्य कार्यालय से फंड की आपूर्ति पर रोक लगाई थी। 2006 से दो बार ऐसी याचिकाओं को निरस्त किया गया था। वित्तीय अनियमितताओं के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में बेंगलुरु स्थित एमनेस्टी के कार्यालय पर छापा भी डाला था, जिसके बारे में TFIपोस्ट ने अपनी पिछली पोस्ट में बताया है ।

बता दें कि अभी कल ही Amnesty International ने अपने भारत संबंधी सभी गतिविधियों को निरस्त करने का निर्णय लिया है। Amnesty International इंडिया के ट्वीट के अनुसार, “सरकार के दमनकारी नीतियों के कारण एमनेस्टी इंटेरनेशनल अब भारत में मानवाधिकारों का संरक्षण नहीं कर पाएगी”, यानि सरकार के दमनकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने के कारण एमनेस्टी इंटेरनेशनल के विरुद्ध कार्रवाई हुई, जिसके कारण उसे भारत में अपने ऑफिस को बंद करना पड़ा है –

 

परंतु केंद्र सरकार वहीं पर नहीं रुकी। अपने बयान में एमनेस्टी के कथित मानवाधिकार संरक्षण की पोल खोलते हुए उन्होंने कहा, “मानवाधिकार और सच्चाई की जो ये लोग दुहाई दे रहे हैं, वो कुछ नहीं बल्कि अपने गतिविधियों से ध्यान हटाने की चाल है। इस तरह के बयान उक्त संगठन के विरुद्ध जांच पड़ताल पर भी काफी असर डालेंगे।”

जबसे मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है, तभी से भ्रष्ट एनजीओ के विरुद्ध उन्होंने किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरती है, चाहे अवैध फंडिंग की बात हो, या एनजीओ की आड़ में गैर कानूनी धंधों को बढ़ावा देना हो। एमनेस्टी इंटेरनेशनल इन लोगों से बिलकुल भी भिन्न नहीं है, और इस बार उसकी पोल खोलने में केंद्र सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।

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