केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन, हर साल 9 अगस्त को जाते थे जेल

 

ramvilas paswas death

भारतीय राजनीति के जाने माने नेता और लोक जन शक्ति पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राम विलास पासवान अब इस दुनिया में नहीं रहे। काफी समय से बीमार चल रहे पासवान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आइए लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रह चुके राम विलास पासवान के जीवन के अलग अलग पहलू को जानते हैं।

वैसे तो राम विलास पासवान दलितों के एक बड़े नेता और बड़े चेहरे के तौर पर पहचान रखते थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें संसदीय लोकतंत्र पर बहुत भरोसा ही नहीं था। बजाय इसके समाज के दबे और पिछड़ों को न्याय दिलाने के लिए उनके मन में नक्सलवाद के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था। यह आकर्षण इतना ज्यादा था कि पहले ही चुनाव में जीतने के बाद भी संसदीय लोकतंत्र में पासवान का मन नहीं लग रहा था, लेकिन जेपी आंदोलन के सर्वधर्म और सर्वजातीय स्वरूप ने उन्हें कभी लोकतंत्र से विचलित नहीं होने दिया।

बिहार के दलित परिवार में हुआ था जन्म

5 जुलाई 1946 को जामुन पासवान के घर बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में राम विलास पासवान का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। कोसी कॉलेज, पिल्खी और पटना विश्वविद्यालय से पासवान ने कानून में स्नातक किया और फिर मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री ली। 1960 के दशक में उन्होंने राजकुमारी देवी से शादी जिसके बारे में साल 2014 में खुलासा हुआ। जिसमें उन्होंने कहा कि 1981 में लोकसभा के नामांकन पत्र को चुनौती देने पर उन्होंने उन्हें तलाक दे दिया था। उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां है जिनका नाम उषा और आशा हैं।

साल 1983 में उन्होंने एक एयरहोस्टेस और अमृतसर से आने वाली पंजाबी हिंदू फैमिली की रीना शर्मा से शादी की। जिनसे उनका बेटा चिराग पासवान है जो एक्टर बनने के बाद आज लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष है। इसके अलावा रीना और रामविलास की एक बेटी भी है।

जब कम हो गई थी पासवान की आंखों की रोशनी

विभिन्न अनुभवों से राम विलास पासवान का जीवन भरा रहा। दलितों के गांव जो चार नदियों से घिरे होते है वहां की ज्यादातर उपजाऊ जमीन उच्च जातियों के लोगों के अधीन थी, जो खेती करने और काटने यहां आते थे। ऐसा नहीं था कि राम विलास पासवान को मूलभूत जरूरतों के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ा, लेकिन हां उन्होंने ऐसे हालात अपने आसपास खूब देखे। पिताजी के मन में बेटे को शिक्षित करने और पढ़ाने की ऐसी ललक थी कि वे कुछ भी करने को तैयार थे। गांव के दरोगा चाचा के मदरसे में पासवान ने पहला हर्फ सीखा पर तीन महीने बाद ही मदरसा नदी में डूब गया।

फिर दो नदी पार कर हर रोज कई किमी दूर के स्कूल से पासवान ने पढ़ाई की। फिर शहर के हरिजन छात्रवास में जगह मिली और वजीफे की छोटी राशि मिलने लगी। पढ़ाई होती रही। एक परेशानी ये सामने आई कि हॉस्टल में रहते हुए उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी। डॉक्टर ने उन्हें लालटेन की रोशनी में पढ़ने को मना किया। ऐसे में पासवान की सुनने और याददाश्त की शक्ति तेज हो गई। क्लास में बैठते और एकाग्र हो सुनते और याद भी वहीं कर लेते।

ऐसे आए राजनीति में…

पढ़ाई पूरी होने लगी तो पासवान पर घर से नौकरी करने का दबाव बढ़ा और डीएसपी की परीक्षा में वे पास हो गए। घर में खुशी का माहौल था लेकिन पासवान तो कुछ और ही सोच रहे थे। पासवान के गृह जिला खगड़िया के अलौली विधानसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव होना था ऐसे में वे घर न जाकर टिकट मांगने सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर चले गए। तब कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए बहुत कम लोग ही तैयार होते थे। ऐसी स्थिति में पासवान जीत भी गए। पिताजी ने तो पुलिस अफसर बनने पर ही दबाव दिया लेकिन दोस्तों ने कहा- सर्वेंट बनना है या गवर्नमेंट, ख़ुद तय करो। आज हर कोई जानता है कि राविलास पासवान कौन थे। वो राजनीति में एक अलग पहचान छोड़ गए हैं।

लेकिन इससे पहले कॉलेज में रहते हुए पासवान ने अपने दोस्तों के साथ हर साल नौ अगस्त को ‘धरती चोरों-धरती छोड़ो’ के नारे के साथ भूमि मुक्ति आंदोलन करते हुए जेल जरूर जाते थे। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरूआत भी थी शायद। जेल से बाहर आने के लिए कभी उन्होंने जमानत नहीं मांगी तब क्योंकि 14 अक्टूबर से पहले जेल से वो कभी छूटना नहीं चाहते थे ऐसा इस वजह से क्योंकि जाड़े का मौसम घोषित हो जाता था तो हर एक कैदी को गरम कपड़ा मिल दिया जाता था। इसमें पैंट, शर्ट, कोट और कंबल बांटे जाते थे।

कांशीराम और मायावती की लोकप्रियता के दौर में भी राजनीतिक जीवन में उतरने वाले नेता के तौर पर रामविलास पासवान, बिहार के दलितों के एक मज़बूत नेता बनकर उभरे और अंत तक टिके रहे। दलित उन्हें अपना तो मानते ही थे अगड़ी जाति भी उन्हें नेता स्वीकार चुकी थी। राजनीति की इतनी पकड़ थी पासवान को कि आने वाले वक्त की पहचान और उसके आधार पर भविष्य के लिए उनके फैसला सौ फीसदी दुरुस्त होते थे।

रामविलास पासवान के राजनीतिक घटनाक्रम पर गौर करें तो वे सामान्य प्रयोजन समिति के 29 जनवरी 2015 को सदस्‍य बनाए गए। साल 2014 में वे 16वीं लोकसभा में फिर से चुने गए। तब उन्‍हें नरेंद्र मोदी की केंद्रीय कैबिनेट में उन्हें जगह दी गई। बतौर मंत्री और फिर बना दिया गया उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में मंत्री। साल 2013 में राज्यसभा की नियम समिति का उन्हें सदस्‍य चुना गया। 2011 में उन्हें परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनाया गया और मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिया गया। जुलाई 2010 से मई 2014 के बीच पासवान राज्‍य सभा के सदस्य रहे।

एक बेहद छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में इतना बड़ा नाम बन जाना उनके सफल राजनीतिक करियर को दिखाता है। जो हर राजीतिनि में कदम रखने वाले युवा को प्रेरित करता रहेगा।

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