वर्ष 1972 में एक गलतफ़हमी फैली, और उसके बाद दुनिया में चीन को master planner समझा जाने लगा


पश्चिमी देशों में चीन को लेकर पिछले कई दशकों से एक भ्रांति फैली हुई है, और वह यह है कि चीन अक्सर लंबे समय के हितों यानि Long term interests को ध्यान में रखकर ही अपनी नीतियों को बनाता है और यह कम्युनिस्ट देश रणनीतिक सूझ-बूझ के पैमाने पर पश्चिमी देशों से कई कदम आगे हैं। हालांकि, पिछले 40 से 50 सालों के चीनी इतिहास पर नज़र डाली जाये, तो हमें इन दावों में कोई दम नहीं दिखाई देता। चीन की one-child policy, Belt and Road Initiative (BRI परियोजना), “one country-two system” जैसी नीतियाँ दर्शाती हैं कि चीन ने लंबे समय के हितों को ध्यान में रखकर जितनी भी नीतियाँ बनाई हैं, उनमें से अधिकतर फेल ही साबित हुई हैं।

यहाँ बड़ा सवाल यह है कि आखिर चीन से संबन्धित यह इतनी बड़ी भ्रांति फैली कैसे? दरअसल, यह भ्रांति चीन के पहले प्रिमियर Zhou Enlai और अमेरिकी विदेश मंत्री Henry Kissinger के बीच वर्ष 1972 में हुई एक बैठक के बाद ही फैली थी। उस वक्त उनसे सवाल पूछा गया था कि फ्रांस की क्रांति का दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ा? इसके जवाब में Zhou Enlai ने कहा था “अभी इसपर कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी।” Zhou Enlai के इस जवाब के करीब 200 सालों पहले फ्रांस में क्रांति आई थी और उनके इस जवाब से पश्चिमी विश्लेषकों को यह संदेश गया कि चीन तो सदियों से हिसाब से सोचने वाला देश है और यह देश किसी भी कदम को चलने से पहले करीब 100-200 सालों की रणनीति बनाता है। हालांकि, उस वक्त यह बात बहुत ही कम लोग जानते थे कि उत्तर देते वक्त Zhou Enlai वर्ष 1789 की फ्रांस क्रांति नहीं बल्कि सिर्फ चार साल पहले वर्ष 1968 में पेरिस में हुए छात्र आंदोलन की बात कर रहे थे। Zhou Enlai गलती से French Revolution को वर्ष 1968 के छात्र आंदोलन से जोड़ बैठे और उनके उस गलत उत्तर को पश्चिम में एक अलग नज़रिये से देखा गया।

पिछले चार से पाँच दशकों में चीन की नीतियों का अध्ययन किया जाये, तो यह पता चलता है कि Long term plans बनाने में चीन से बड़ा फिसड्डी देश कोई नहीं है। उदाहरण के लिए चीन की one-child policy को ही ले लीजिये। चीन ने बेशक अब तक इस नीति का बड़ा आर्थिक फायदा उठाया है, लेकिन इसके कारण अब चीन एक demographic bomb पर आकर बैठ गया है, जहां कम युवाओं पर अधिक बुजुर्गों का बोझ पड़ेगा और यह सामाजिक ताने-बाने को भी नकारात्मक तौर पर प्रभावित करेगा। इसके प्रभाव अभी से दिखने शुरू हो चुके हैं और इसीलिए चीन इस नीति से अपना पीछा भी छुड़ा चुका है।

इसी प्रकार चीन ने वर्ष 2013-14 में अपने महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट को भी लॉंच किया था, जिसके जरिये चीन ने दुनिया के अलग-अलग देशों में infrastructure को विकसित कर दुनिया की सप्लाई चेन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने का सपना देखना था। हालांकि, आज महज़ 6 सालों के बाद ही इस प्रोजेक्ट पर खतरे की तलवार टंगी दिखाई दे रही है। अमेरिका इससे जुड़ी कंपनियों पर प्रतिबंधों का ऐलान कर रहा है, तो वहीं दुनिया के अलग-अलग देश BRI के कारण बड़े-बड़े चीनी loans के कर्ज़ के बोझ तले दबकर अपनी संप्रभुता को चीनी हाथों में सौंपने पर विवश होते दिखाई दे रहे हैं।

कोरोना के बाद China की Wolf Warrior डिप्लोमेसी को कोई कैसे भुला सकता है। कोरोना को लेकर जब China पर सवाल उठना शुरू हुए, तो चीन ने दुनिया को आक्रामकता के साथ जवाब देना सही समझा। ऑस्ट्रेलिया ने जब वायरस की उत्पत्ति की जांच की बात कही, तो चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर कई आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया। इसके अलावा अलग-अलग देशों में मौजूद चीनी राजदूतों ने भी बेहद आक्रामक रुख अपनाकर दुनिया को शांत कराने की कोशिश की, लेकिन इसका नतीजा यह निकला है कि China द्वारा सालों में अर्जित की गयी soft power अब नाली में बह चुकी है। आज दुनिया China पर विश्वास करने से घबराती है और ऐसे स्थिति में China दुनिया का नेतृत्व करने का सपना तो कतई पूरा नहीं कर सकता।

चीन द्वारा लद्दाख में उठाया गया कदम भी उसके मानसिता को दिखाता है। चीन ने दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था, दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश और दुनिया की एक पराक्रमी सेना के साथ बिना सोचे समझे बड़ा विवाद खड़ा कर दिया, और अब China को मुंह छिपाने की जगह नहीं मिल रही है। लद्दाख में चीन की गलती चीन में शी जिनपिंग की राजनीति के लिए अब बड़ी मुश्किलें खड़ी कर रही है, और जिनपिंग यहाँ से अब ना तो भारत पर हमला ही बोल सकते हैं और ना ही वे पीछे हटने का जोखिम ले सकते हैं।

सच्चाई यह है कि लंबे समय के हितों के लिए China की सफल रणनीति का कोई उदाहरण देखने को मिलता ही नहीं है। रणनीति बनाने के मामले में China एक overrated देश है जिसकी वजह से अक्सर चीन के विरोधी और विश्लेषक चीन के बेवकूफाना कदमों का भी बड़ी गंभीरता से विश्लेषण करते हैं। दुनिया को पेपर ड्रैगन के इस सच से अवश्य ही अवगत होना चाहिए।

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