टोयोटा को जितनी मर्जी गाली दो, लेकिन हर vehicle के लिए 28% GST का लॉजिक समझ से परे है


भारत में एक तरफ जहां कई क्षेत्रों में विदेशी कंपनियाँ निवेश कर रही हैं, मोटर कंपनियों में सभी बड़ी कार निर्माता टोयोटा ने भारत में अपने बिजनेस के विस्तार पर रोक लगा दी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला भारत में बढ़ते टैक्स के कारण लिया गया है। हालांकि, भले ही टोयोटा को उसके भारत में विस्तार न करने के फैसले पर कोसा जाएगा लेकिन यह भी सच है कि कारों पर 28 प्रतिशत GST कहीं से भी उचित नहीं है।

दरअसल, ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन का कहना है कि अब वह भारत में विस्तार नहीं करेगा। टोयोटा ने स्पष्ट रूप से अपने इस फैसले के लिए टैक्स को जिम्मेदार बताया है।

टोयोटा की भारतीय यूनिट Toyota Kirloskar Motor के वाइस चेयरमैन शेखर विश्वनाथन का कहना है कि सरकार ने कारों और मोटरबाइक पर बहुत अधिक टैक्स लगा रखा है। इससे वाहनों के उत्पादन को बढ़ाने में मुश्किल हो रही है।

अधिक टैक्स के कारण कारें महंगी हो चुकी हैं जिसके कारण उपभोक्ताओं के जेब पर भारी पड़ रहा है, जिससे वे कार लेने से कतरा रहे हैं। उपभोगताओं द्वारा कार न लिए जाने के कारण एक तो फैक्ट्रियां बेकार पड़ी हैं, वहीं नौकरियां भी पैदा नहीं हो रही हैं।

हालांकि, टोयोटा ने यह स्पष्ट किया है कि वे भारत छोड़कर नहीं जाने वाले बल्कि सिर्फ अपने बिजनेस को विस्तार से रोका है। शेखर विश्वनाथन ने कहा कि, “यदि टैक्स सिस्टम में कोई सुधार नहीं होता है तब भी हम भारत छोड़कर नहीं जाएंगे। लेकिन हम उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं कर पाएंगे।’’

बता दें कि दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी टोयोटा ने भारत में 1997 में अपना ऑपरेशन शुरू किया था। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के डाटा के मुताबिक अगस्त में घरेलू वाहन बाजार में टोयोटा की हिस्सेदारी 2.6 फीसदी रही है। हालांकि यह हैरानी की बात है कि एक साल पहले टोयोटा की हिस्सेदारी 5 फीसदी थी।

टोयोटा के इस तरह से सिकुड़ने का कारण और कुछ नहीं बल्कि कंपनियों पर लगने वाला जीएसटी है। भारत में मोटर वाहन जैसे कार, टू-व्हीलर, स्पोर्ट्स यूटीलिटी व्हीकल (SUV) पर 28 प्रतिशत का टैक्स लगता है।

इसके अतिरिक्त वाहनों पर 1 से 22 फीसदी तक की लेवी लगती है। जिसको मिला कर टैक्स 50 प्रतिशत के आसपास हो जाता है। यह लेवी कार के प्रकार, लंबाई और इंजन की क्षमता पर निर्भर करती है। 1500 सीसी से ज्यादा की इंजन क्षमता वाली चार मीटर लंबी एसयूवी पर 50 फीसदी टैक्स लगता है। सामान्य तौर पर अतिरिक्त levies लग्जरी सामान पर लगती है और भारत में कार, सिगरेट और चमकदार पानी को लग्जरी सामान माना जाता है। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहनों पर केवल 5 प्रतिशत का टैक्स है।

भारत में टोयोटा ने बड़े पैमाने पर हाइब्रिड वाहनों की ओर रुख किया था जो 43% के टैक्स को आकर्षित करते हैं क्योंकि वे पूरी तरह से इलेक्ट्रिक नहीं होते हैं।

यही कारण है कि कार बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियाँ दुनिया के चौथे सबसे बड़े कार मार्केट यानि भारत में विस्तार करने में संघर्ष कर रही हैं। ऑटो कंपनियाँ जैसे जनरल मोटर्स वर्ष 2017 में ही भारत के बाजार को छोड़कर जा चुकी है। वहीं फोर्ड मोटर कंपनी ने पिछले साल महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ जॉइंट वेंचर की घोषणा की थी।

किसी भी बाजार के लिए कार जैसी वस्तु पर 28 प्रतिशत का टैक्स किसी कठोर दंड से कम नहीं है। अधिक टैक्स की वजह से निवेश करने वाली कंपनियाँ हतोत्साहित होती हैं और मार्जिन पर भी असर पड़ता है। यही नहीं, किसी भी नए उत्पादों की लॉन्चिंग के लिए अधिक नुकसान उठाना पड़ता है।

हर वाहन के लिए 28% GST बेतुका है और इसे बदलने की आवश्यकता है। यदि भारत में मोटर वाहनों की कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करना है जिससे अधिक से अधिक ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा मिले और अधिक से अधिक नौकरी पैदा हो तो केंद्र सरकार को मोटर वाहनों पर लगने वाले टैक्सों को कम कर कंपनियों को छुट देनी होगी जिससे वे हतोत्साहित न हो बल्कि अधिक से अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हो।

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