Tatas के आए बुरे दिन- देश का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित उद्योग घराना अब बिखरने जा रहा है


भारतीय व्यापार जगत में टाटा सबसे प्रतिष्ठित नाम है। सॉफ्टवेयर से लेकर ट्रक बनाने वाले इस समूह की प्रतिष्ठा देश के सबसे बड़े और सबसे पुराने व्यापारिक साम्राज्यों में से एक के रूप में होती है। कई लोगों के लिए, टाटा केवल एक व्यवसाय नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय ब्रांड है। परंतु अब यह दो पारसी कारोबारी परिवारों यानि टाटा और मिस्त्री परिवार के बीच बढ़ते तनाव से अब टूटने के कगार पर है।

टाटा और मिस्त्री दोनों पारसी कारोबारी परिवार अब Tata Sons Pvt में हिस्सेदारी का मूल्यांकन करने के लिए आमने-सामने आ चुके हैं। भारत के सबसे बड़े कॉर्पोरेट में इस तरह विवाद अब देश की सबसे बड़ी सुर्खियों में से एक बन चुका है।

दरअसल, मिस्त्री परिवार के स्वामित्व वाले शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप और टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड के बीच संबंधों की कड़वाहट तब शुरू हुई थी जब वर्ष 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन के रूप में बाहर कर दिया गया था। हालांकि, जब वर्ष 2011 में, साइरस मिस्त्री को रतन टाटा के उत्तराधिकारी और टाटा संस प्राइवेट के छठे अध्यक्ष के रूप में चुना गया था तब कई लोग हैरान हुए थे।

तब सभी को यह पता था कि कि एसपी समूह और टाटा संस के बीच व्यापार के बाहर भी अच्छे संबंध रहे हैं। साइरस टाटा बोर्ड में अपने पिता की 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी के आधार पर टाटा बोर्ड में शामिल हुए थे। विडंबना यह है कि वही हिस्सेदारी अभी चल रहे विवाद के केंद्र में है।

22 सितंबर को, Shapoorji Pallonji Group ने घोषणा की कि वह टाटा संस से minority stakeholder के रूप से बाहर हो जाएगा जिसके बाद मिस्त्री और टाटा की वर्षों पुराना साथ भी समाप्त हो जाएगा। एसपी समूह एक त्वरित सौदा चाहता है क्योंकि टाटा व्यापार साम्राज्य में अपनी हिस्सेदारी बेचकर, अपने स्वयं के तंगी वाले व्यवसाय के लिए धन जुटाना चाहता है।

दूसरी ओर, टाटा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अगर मिस्त्री को अपने तंगी वाले एसपी समूह के कारोबार के लिए पैसे की जरूरत है तो वह खुद स्टॉक खरीदने के लिए तैयार है, लेकिन दोनों विवादों में टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड में एसपी समूह की हिस्सेदारी के मूल्यांकन के बारे में अलग रणनीति के बारे में सोच सकते हैं।

कोर्ट फाइलिंग में हिस्सेदारी का मूल्य 1.5 ट्रिलियन रुपये यानि 20.3 बिलियन डॉलर है, लेकिन यह एक व्यापारिक सौदा होने जा रहा है और अंततः इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सी पार्टी बेहतर सौदेबाजी करती है।

ब्लूमबर्ग के अनुसार, गिरती मूल्यों पर भी, यह टाटा समूह या किसी भी अन्य निवेशक के लिए इतना धन जुटाना आसान नहीं होगा, वह भी ऐसे समय में जब COVID​​-19 महामारी ने दुनिया भर के व्यापारिक अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया है। अब तक न तो टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड और न ही एसपी ग्रुप ने कोई टिप्पणी की है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि टाटा समूह को इस मूल्यांकन या बँटवारे की कोई जल्दी नहीं है जबकि एसपी समूह फंडिंग के लिए बेचैन है। एसपी ग्रुप को टाटा संस के करीबी के रूप में देखते हुए उसे बाहरी निवेशक को आकर्षित करने में मुश्किल होने वाली है। टाटा समूह खुद को भारत या दुनिया में बड़े पैमाने पर व्यापार के माहौल को देखते हुए एक त्वरित समझौते के लिए उत्सुक नहीं दिखाई दे रहा है। इससे टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड का भविष्य एक प्रमुख कॉर्पोरेट झगड़े के बीच और अधिक अनिश्चित हो चुका है।

जमशेदजी द्वारा वर्ष 1868 में अपनी छोटी ट्रेडिंग कंपनी स्थापित करने के बाद टाटा समूह का वैश्विक कारोबार में एक बड़े नाम के रूप में विस्तारित हो गया है जिसका वार्षिक कारोबार 100 बिलियन से अधिक है। यह विडम्बना ही है कि आज यह समूह टूटने के कगार पर खड़ा है और इसके लिए दो प्रमुख परिवार जिम्मेदार होंगी।

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