लद्दाख की सर्दी में कागज के पुतलों की तरह ढेर हो रहे हैं PLA के बच्चे, ये क्या लड़ेंगे?

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एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनातनी जारी है, और ऐसा लग रहा है मानो चीन युद्ध पर आमादा है। परंतु चीन के पीएलए सैनिकों की हालत देखकर ऐसा तो नहीं लगता कि वे युद्ध लड़ने की हालत में भी है, जीतना तो बहुत दूर की बात है। अभी सर्दियाँ शुरू भी नहीं हुई है, लेकिन अभी से ऊंचे इलाकों में तैनात चीनी सैनिकों की सांसें फूलने लगी है और उन्हें ऊंचाई संबन्धित बीमारियों ने घेरना शुरू कर दिया है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार रेजांग ला के फिंगर 4 क्षेत्र में तैनात पीएलए सैनिक की हालत पतली होनी शुरू हो गई है। रिपोर्ट के एक अंश के अनुसार, “भारतीय सेना से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सैनिकों ने एलएसी के उस पार पीएलए के सैनिकों को पैंगोंग त्सो के उत्तरी छोर पर स्थित फिंगर 4 क्षेत्र से स्ट्रेचर पर नीचे जाते देखा है। उन्हें फिंगर 6 पर स्थित चीनी मेडिकल फैसिलिटी पर भेजा है, क्योंकि पीएलए के सैनिकों को ऊंचे इलाकों में काम करने के कारण तकलीफ़ें महसूस हो रही हैं। ये प्रकरण पिछले दो तीन दिनों से जारी है”।

पूर्वी लद्दाख में जब सर्दियाँ पड़ती हैं, तब तापमान 16000 से 17000 फीट की ऊंचाई पर शून्य डिग्री से नीचे चला जाता है। ऐसे में दोनों पक्षों की सेनाओं को दुश्मन की गोलियों के साथ साथ लद्दाख की गला देने वाली सर्दियों से भी बचने की ज़िम्मेदारी बन जाती है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “16000 से 17000 फीट की ऊंचाई के कारण सर्दियों में भारत हो या चीन, दोनों के सैनिकों के लिए समस्याएँ बद से बदतर हो जाएंगी। पूर्वी लद्दाख में तैनात भारतीय सैनिकों ने पहले ही ऐसे तापमान में रहने की ट्रेनिंग ले ली है, और उन्हें सभी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है, ताकि संकट आने पर उनकी त्वरित सहायता की जा सके। भारतीयों ने सियाचिन जैसे इलाकों में भी मोर्चा संभाला है। परंतु ऊंचाइयों पर लड़ने के अपने हानि लाभ भी होते हैं”।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि लड़ाई शुरू होने से पहले चीन के पीएलए के सैनिकों की हवाइयां निकलने लगी है। 11 सितंबर को ग्लोबल टाइम्स के हू शीजिन ने यह दावा करते हुए ट्वीट किया था कि चीन के पास सभी प्रकार की सुविधाएँ हैं, और भारतीयों को ठंडे खाने के साथ साथ कड़ाके की ठंड और COVID 19 की महामारी से भी जूझना पड़ेगा। लेकिन यहाँ सच्चाई तो कुछ और ही है।

बता दें कि भारतीय सैनिकों के पास ऊंचे इलाकों में युद्ध करने का भरपूर अनुभव है। हमारे सैनिकों ने माइनस 50 डिग्री के तापमान में भी शत्रुओं के दाँत खट्टे किए हैं, जैसे 1987 में ऑपरेशन राजीव के अंतर्गत भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने सियाचिन ग्लेशियर के सबसे ऊंचे पोस्ट को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराया था।

इसके अलावा भयंकर सर्दी में भी भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस का साक्षी वही पूर्वी लद्दाख रहा है, जहां इस समय तनातनी चल रही है। 18 नवंबर 1962 को कड़कड़ाती सर्दी में रेजांग ला के मोर्चे पर जब चीन ने हमला किया, तो केवल 125 भारतीय सैनिक थे, जिनके पास उचित शस्त्र तो छोड़िए, पहनने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं थे। यही ,सैनिक चीनी सैनिकों पर टूट पड़े, और करीब 1350 चीनी सैनिकों को धाराशायी करके ही दम लिया।

वहीं अभी सर्दियों ने ढंग से दस्तक भी नहीं दी है, और चीन के पीएलए सैनिक अभी से हाँफने लगे हैं। शायद गलवान घाटी में ही चीन को अपनी औकात पता चल चुकी थी, तभी तो वह अपने मृत सैनिकों की वास्तविक संख्या बताने से कतरा रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में TFI पोस्ट ने चीनी सैनिकों की पोल खोलते हुए बताया था कि चीन की सेना सिर्फ नाम के लिए है।

उक्त रिपोर्ट के अनुसार, “अब अगर युद्ध में pampered बच्चे आकर लड़ाई लड़ेंगे, तो हश्र तो यही होगा ना!” अब आपको चीनी सेना की एक और उपलब्धि बताते हैं। वर्ष 2016 में छपी The Guardian की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब चीनी सैनिक UN peacekeeping मिशन के तहत सूडान में तैनात थे, तो उनपर एक बार सूडान के विद्रोहियों ने हमला बोल दिया था। उन चीनी सैनिकों पर एक civilian protection site की सुरक्षा करने का जिम्मा था, लेकिन विद्रोहियों को देखकर चीनी सैनिकों के पसीने छूट गए और वे अपनी जगह को छोड़कर भाग गए।

उन चीनी सैनिकों की बुजदिली की वजह से ना सिर्फ कई मासूमों की जान चली गयी, बल्कि कई महिलाओं का यौन शोषण भी किया गया। यही चीनी सेना की सच्चाई है, जो अब दुनिया के सामने एक्सपोज हो चुकी है। इसलिए चीनी सेना को ज़मीन पर रहकर अपनी औकात के अनुसार ही बात करनी चाहिए। यही कारण था कि डोकलाम में चीनी सेना को मुंह की खानी पड़ी थी, और अब लद्दाख में भी चीनी सेना का यही हाल होना तय है।

ऐसे में फिंगर 4 से चीनी सैनिकों के पस्त होने की खबर एक बार फिर ये सिद्ध करती है कि चीन की पीएलए सिर्फ कागजी शेर है, असल में चुनौती मिलने पर वे वैसे ही दुम दबाके भागते हैं, जैसे डूबते जहाज़ से चूहे।

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