“पैसा चीन का, मिसाइल N.Korea की” Dangdong में चीन के कारनामों के बाद उसे UNSC से बाहर फेंका जाना चाहिए


आज कोई भी दिन नहीं ऐसा नहीं होता जब कोई खबर चीन के दादागिरी दिखाने की न आए। अब एक नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद चीन अपने बॉर्डर पर यालु नदी के किनारे बसे Dandong शहर के रास्ते वित्तीय मदद कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की इस तरह लगातार अवमानना करने के कारण अब चीन को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से बाहर निकालने का केस और मजबूत हो चुका है। हालांकि, अभी भी कुछ रुकावटें हैं लेकिन अगर सुरक्षा परिषद और जनरल असेंबली के सभी देश एक साथ आ गए और कुछ structural reform किया जाए तो चीन को UNSC और वीटो से बेदखल करना असंभव नहीं है।

दरअसल, यलु नदी के किनारे बसा एक जीर्ण-शीर्ण शहर Dandong चीन को उत्तर कोरिया से अलग करता है। रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि चीन पहले से ही संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया के साथ अवैध व्यापार में शामिल है।

बता दें कि सितंबर 2017 में, उत्तर कोरिया द्वारा छठा और अब तक का सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण करने के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रतिबंध लगाए थे, जिसमें कोयले और खनिजों का निर्यात भी शामिल था।

हैरानी की बात है कि उस दौरान तो उन प्रतिबंधों का चीन ने समर्थन किया था और 2018 के सितंबर में, बीजिंग ने अंतर्राष्ट्रीय प्रेस को यहां तक ​​कह दिया था कि उसने UNSC द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को लागू करने के लिए उत्तर कोरियाई कोयला के शिपमेंट को पूरी तरह से बंद कर दिया है।

हालांकि, अब वॉयस ऑफ अमेरिका की एक नई रिपोर्ट पूरी तरह से एक अलग कहानी बयां कर रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं मिले हैं कि Dandong की कंपनियां अभी भी उत्तर कोरिया से सामान आयात करती हैं। ब्रिटेन Royal United Services Institute के शोधकर्ताओं का कहना है कि Dandong में स्थित कंपनियाँ उत्तर कोरिया से से कोयला और खनिज आयात कर रहे हैं और उन्हे वैश्विक बाजार में बेच रहे हैं, और वैश्विक बाजार से सामान खरीद कर उत्तर कोरिया को निर्यात भी कर रहे हैं जो प्योंगयांग के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

बता दें कि Dandong ने उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के शोध से पता चलता है कि 2014 और 2017 के बीच, उत्तर कोरिया के कुल व्यापार का लगभग एक चौथाई केवल 150 Dandong आधारित कंपनियों के माध्यम से हुआ, जिसका मूल्य लगभग 2.9 बिलियन डॉलर है।

दशकों तक Dandong एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना रहा है जिसके माध्यम से चीन ने उत्तर कोरियाई शासन को वित्तीय मदद की है। हालांकि, जब प्रतिबंधों की घोषणा की गई थी तब व्यापार में तेज से कमी आई थी। परंतु अगर कम्युनिस्ट देश नियमों और कानूनों की धज्जियां न उड़ाए तो वह कम्युनिस्ट देश कैसा?

चीन ने UN के प्रतिबंधों की उसी तरीके से धज्जियां उड़ाई। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन कई तरीकों से कोरिया को वित्तीय मदद करने के लिए Money Laundering कर रहा है जिससे उत्तर कोरिया की डूबती अर्थव्यवस्था बचाया जा सके।

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उत्तर कोरिया चीन के इस मदद का उपयोग अपने परमाणु कार्यक्रम और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को गति देने के लिए कर सकता है।

चीन ने इससे पहले भी इसी तरह से कई बात प्रतिबंधित देशों के साथ नजदीकी बढ़ाने का काम किया है। आज जिस तरह से प्रतिबंधों से घुटते इरान को 400 बिलियन की मदद कर चीन उसके करीब हो चुका है वह किसी से छुपा नहीं है।

हालांकि, चीन इस तरह से उत्तर कोरिया की मदद नहीं कर सकता है लेकिन चोरी छिपे वह इसे और सशक्त बना रहा है जो विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा है।

चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी पांच देशों में से एक है और इस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के खिलाफ काम करना दिखाता है वह किस प्रकार से चीन एक Rouge Nation हो चुका है। इस कारण से न तो उसके पास वीटो का अधिकार होना चाहिए और न ही स्थायी सदस्यता होनी चाहिए। आज जिस तरह से चीन लगातार अपनी मनमानी कर रहा है, कभी UN के प्रतिबंधों का मज़ाक उड़ा कर तो कभी South China Sea में गुंडागर्दी कर, तो कभी पड़ोसी देशों के साथ बॉर्डर विवाद शुरू कर या फिर कोरोना जैसेॉी महामारी के दौरान सहयोग और पारदर्शिता न मज़ाक उड़ा कर, उससे चीन को UNSC से ही बाहर कर दिया जाना चाहिए।

हालांकि, UNSC में ऐसे संरचनात्मक सुधारों को लाने की आवश्यकता के बारे में भारत लंबे समय से मांग कर रहा है जिससे चीन जैसे Rouge Nations को उनकी अपनी नापाक हरकतों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र का चार्टर किसी भी देश को UNSC से हटाने का कोई विकल्प नहीं देता है। यह स्थायी सदस्यों और गैर-स्थायी सदस्यों दोनों के लिए है। अगर किसी देश को UNSC से हटाना है तो इसके लिए UN के चार्टर को संशोधित करना ही एक मात्र विकल्प नजर आता है। यदि UN चार्टर के अध्याय XVIII का संशोधन किया जाता है तो किसी भी स्थायी या गैर स्थायी सदस्य की सदस्यता को रद्द किया जा सकता है। इसके लिए General Assembly के 2/3 वोट की आवश्यकता होगी है, और सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों को भी इसके साथ सहमत होना होगा। यानि अगर देखा जाए तो UNSC के एक स्थायी सदस्य को उसकी सहमति के बिना UNSC से हटाया नहीं जा सकता है। परंतु यहाँ बात विश्व को चीन के प्रकोपों से बचाने का है, ऐसे में चीन को नजर अंदाज कर सभी देशों को, General Assembly से लेकर सुरक्षा परिषद तक सभी को एक साथ आ कर चीन का बहिष्कार कर संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संरचनात्मक सुधारों को लाना होगा।

वहीं संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय दो में अनुच्छेद VI A के अनुसार एक सदस्य देश को चार्टर में निहित सिद्धांतों के लगातार उल्लंघन के लिए निष्कासित किया जा सकता है। चीन को भी सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा संगठन से निष्कासित किया जा सकता है। जाहिर है, अगर संयुक्त राष्ट्र से निष्कासित किया गया, तो कोई देश अब सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं हो सकता है।

हालांकि, एक और संभावना है। जिस कानूनी प्रावधान से वर्ष 1971 में ताइवान से सदस्यता UN ने चीन के हाथों में दे दी थी उसी तरह से चीन की सदस्यता वापस ताइवान को भी दी जा सकती है। वर्ष 1971 तक Republic of China यानि ताइवान के पास UN की स्थायी सदस्यता और वीटो दोनों थे। चीन के गृहयुद्ध के दौरान वर्ष 1949 में Kuomintang (गुओमिंदांग) पार्टी के शासन की हार के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें ताइवान तक सीमित कर दिया था लेकिन बाकी विश्व के लिए वही वास्तविक चीन था। परंतु जैसे जैसे कम्युनिस्ट पार्टी मजबूत होती गयी वैसे-वैसे उसका प्रभाव बढ़ता गया। वर्ष 1971 में संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान की सारी शक्ति चीन को दे दी। इसी तरह अगर वापस ताइवान को सारी शक्ति दे दी गयी तो चीन के पास संयुक्त राष्ट्र में शक्तियाँ नहीं बचेंगी और संरचनात्मक सुधारों को आसानी से लाया जा सकेगा।

अब समय आ गया है कि UNSC के 5 स्थायी सदस्यों को भी जांच के दायरे में लाया जाये। चीन बार-बार संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था के तौर पर मज़ाक उड़ता है, ऐसे में यह आवश्यक है उसके स्थान पर भारत जैसे मजबूत और उभरते हुए देश को भी जोड़ा जाए जिससे संगठन में अधिक संतुलन लाया जा सके।

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