जापान और भारत एक दूसरे के पूरक हैं, Indo-Pacific में इनकी साझेदारी चीन के लिए Death Warrant से कम नहीं है


जब बात चीन को उसकी औकात बताने की हो, तो भारत ने अपना अभियान केवल आर्थिक और रक्षात्मक मोर्चे तक ही सीमित नहीं रखा है, अपितु भारत कूटनीतिक मोर्चे पर भी चीन के विरोधियों से संबंध बढ़ाकर चीन के लिए आगे की राह और मुश्किल बनाने पर तुला हुआ है। इस बीच भारत ने भारत प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को समाप्त करने के लिए जापान के साथ आधिकारिक तौर पर हाथ मिला लिया है।

ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत जापान के साथ मिलकर फार ईस्ट और भारत प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग से अपनी अलग पहचान बनाए। रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “जयशंकर ने जापान को भारत के सबसे विश्वसनीय साझेदारों में से एक बताते हुए कहा, “हमारे यहाँ मारुति की क्रांति आई, फिर मेट्रो क्रान्ति हुई, और अब बुलेट क्रांति आने वाली है, क्योंकि जापान जैसे मित्र की संस्कृति, जापान का इतिहास ही उसे हमारे प्रगति के लिए एक अहम साझेदार बनाता है”।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन किस तरह से Indo-Pacific में अपनी धाक जमाना चाहता है, जिसके लिए वह दक्षिण चीन सागर का बेजा इस्तेमाल करने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाता। लेकिन यहाँ जापान और भारत की जोड़ी चीन को तगड़ा झटका दे सकते हैं,  क्योंकि यहाँ जापान न केवल एक आर्थिक महाशक्ति है, अपितु हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन को चुनौती देने में भी सक्षम है। यदि जापान को भारत के सैन्य बलों का साथ मिल जाये, तो ये जोड़ी खूब धाक जमा सकती है।

परंतु यह ऐसा कैसे संभव है? दरअसल अगर देखा जाये, तो जापान और भारत एक दूसरे के पूरक हैं। जापान आर्थिक तौर पर काफी समृद्ध है, और चीन के बाद वह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। दूसरी ओर भारत जैसे देश के पास एक विशाल मार्केट और सस्ते लेबर का भंडार है, जिससे जापान की अर्थव्यवस्था को वुहान वायरस के कारण हुए नुकसान से न केवल मुक्ति मिलेगी, अपितु भारत की अर्थव्यवस्था में भी चार चाँद लगेंगे।

यदि Japan आर्थिक तौर पर चीन को हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चुनौती देने योग्य है, तो भारत के पास एक सशक्त नौसेना है, जिसकी सहायता से जापान चीन की औपनिवेशिक मानसिकता को नियंत्रण में रख सकता है। ऐसे में यदि भारत और जापान इंडो पैसिफिक क्षेत्र को मुक्त रखने के लिए एक साथ हो लिए, तो अंत में चीन को ही मुंह की खानी पड़ेगी।

2010 में भारत और जापान की एक bilateral summitके दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि भारत की उभरती अर्थव्यवस्था, युवा जनसंख्या और विशाल मार्किट यदि जापान के तकनीकी कौशल, उत्पादन क्षमता और वित्तीय संसाधनों के साथ जुड़ जाये, तो दोनों देश आर्थिक और सामाजिक प्रगति की राह पर अग्रसर होंगे। उन्होंने ये भी कहा था कि समय आ गया है कि भारत और Japan अपनी ताकत को पहचाने।

आज ज़मीन पर Japan और भारत एक दूसरे के पूरक सिद्ध हो रहे हैं। जहां Japan भारत के लिए आर्थिक तौर पर किसी संकटमोचक से कम नहीं है, तो वहीं भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती से निपटने में जापान के लिए भारत संकटमोचक के रूप में काम आएगा। ऐसे में इंडो पैसिफिक क्षेत्र में Japan और भारत की साझेदारी चीन के लिए किसी डैथ वॉरेंट से कम नहीं है, और अब चीन के लिए आगे कोई भी गलती बहुत भारी पड़ेगी।

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