तीन महीने देश में लॉकडाउन लगा रहा, कारखाने बंद पड़े रहे- GDP का कम होना स्वाभाविक है, इसे logic से समझिए

GDP


सोमवार को सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानि अप्रैल से जून तक के GDP आंकड़े जारी किए गए। इसी के साथ सोशल मीडिया पर अर्थशास्त्र का ज्ञान रखने वाले एक्स्पर्ट्स की भी बाढ़ आ गयी। हर रोज़ अपनी विशेषज्ञता बदलने वाले इन “एक्स्पर्ट्स” ने यह दावा किया कि कोरोना की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई है, और यहाँ से रिकवरी करना बहुत मुश्किल साबित होगा।

कोरोना से भारतीय GDP को हुए असल नुकसान को समझने के लिए हमें सबसे पहले GDP की परिभाषा को समझना होगा! GDP किसी भी निर्धारित समय के दौरान उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के आर्थिक मूल्य को कहते हैं। इसका मतलब यह है कि अप्रैल से लेकर जून तक देश में जिन भी वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया गया होगा, उन सभी के आर्थिक मूल्य के जोड़ से ही GDP का आंकड़ा निकाला गया होगा।

अब यह बात समझने वाली है कि अप्रैल से लेकर जून तक अधिकतर समय देश लॉकडाउन में ही रहा था। कारखाने बंद हो चुके थे, ऑफिस को भी बंद कर दिया गया था, मजदूर घर की ओर चल दिये थे। ऐसे में देश में बेहद कम आर्थिक गतिविधियां ही हो पा रही थीं। ज़रूरत के सामान और स्वास्थ्य सेवाओं को छोड़कर बाकी सारा काम ही बंद पड़ा था। इसके कारण देश में सामान और सेवाओं का उत्पादन ही नहीं हो पाया, तो GDP तो कम होनी ही थी।

25 मार्च से लेकर 31 मई तक देश में पूर्णतः लॉकडाउन लगा रहा था। इन 68 दिनों में देश में कोई भी उत्पादन कार्य नहीं हो पाया। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के सिर्फ एक महीने यानि जून में ही कुछ हद तक आर्थिक गतिविधियां शुरू हो पाई थीं। यही कारण था कि GDP में सिर्फ 23.9 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली। अगर लॉकडाउन को एक महीना और बढ़ा दिया जाता तो यह गिरावट 50 प्रतिशत से अधिक भी हो सकती थी।

देश में लॉकडाउन लगाया जाना कोई सामान्य स्थिति नहीं है। ऐसे में हमें पिछले तिमाही के GDP आंकड़ों को न्यायपूर्ण दृष्टि से देखना चाहिए। अब यह सवाल खड़ा होता है कि क्या देश में लॉकडाउन लगाया जाना आवश्यक था। देश में अब करीब 80 हज़ार कोरोना के मामले रोजाना सामने आ रहे हैं, साथ ही भारत अमेरिका, ब्राज़ील के बाद कोरोना से प्रभावित तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। हालांकि, हमें इस बात को समझना होगा कि लॉकडाउन के दौरान देश की केंद्र और राज्य सरकारों को तैयारी करने का मौका मिल गया। रेलवे में कोरोना कोच से लेकर कोरोना के लिए विशेष अस्पताल बनाने तक, और PPE के निर्माण की फ़ैसिलिटी से लेकर इकॉनमी मैनेजमेंट तक, लॉकडाउन ने सरकार को यह सब करने का मौका दिया। यही कारण है कि ज़्यादा मामले होने के बावजूद देश में रिकवरी रेट भी काफी अच्छा है।

इसमें कोई शक नहीं है कि GDP में यह गिरावट अस्थायी है और जिस प्रकार दुनियाभर में अर्थव्यवस्थाओं को झटका झेलना पड़ रहा है, ठीक वैसे ही भारत को भी लॉकडाउन के कारण यह आर्थिक गिरावट झेलनी पड़ी है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के अन्य पैमानों पर देश की इकॉनमी फिर भी बेहतर परफ़ोर्म कर रही है। भारतीय कंपनियों को लॉकडाउन के दौरान भी करीब 22 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है।

NITI आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक “देश की FDI नीति दुनिया में सबसे ज़्यादा लिबरल है। हमें बड़ा विदेशी निवेश मिलता रहा है। कोरोना के दौरान भी हमें 22 बिलियन का विदेशी निवेश मिला”। इसी के साथ अगस्त के महीने में Foreign Portfolio Investment यानि FPI का नेट inflow 47 हज़ार 334 करोड़ रुपये रहा है।

कई सालों में पहली बार भारत ने किसी तिमाही में इम्पोर्ट से ज़्यादा एक्स्पोर्ट्स किए। भारत ने इस दौरान 5.67 लाख करोड़ का निर्यात किया तो सिर्फ 4.92 लाख करोड़ का ही आयात किया। इसके कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 75 हज़ार करोड़ रुपये का इजाफा हुआ। देश का विदेशी मुद्रा भंडार इस दौरान 550 बिलियन पर पहुँच गया, जो हमारा आज तक का सर्वाधिक स्तर रहा है। सितंबर तिमाही में भी देश में एक्स्पोर्ट्स का कुल इम्पोर्ट्स से ज़्यादा होने के ही अनुमान हैं। हालांकि, यह सिर्फ तब तक ही जारी रहेगा, जब तक देश में चीजों की मांग कम रहती है। जैसे ही देश में उपभोक्ताओं की मांग बढ़ेगी, वैसे ही दोबारा हमारे इम्पोर्ट्स बढ़ते हुए दिखाई देंगे।

इसलिए आवश्यक है कि हम आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को सफल बनाकर देश में अधिक से अधिक उत्पादन कर उनका निर्यात करें। इसकी वजह से ना सिर्फ देश में रोजगार बढ़ेगा, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी तेजी से इजाफ़ा होगा। देश की इकॉनमी को झटका ज़रूर लगा है लेकिन यह सिर्फ कुछ समय के लिए है। इस दौरान हमें सोशल मीडिया पर हर रोज़ जन्म लेते इकॉनमी के एक्स्पर्ट्स से बचकर रहना होगा।

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