FCRA में बदलाव कर अमित शाह सिर्फ धर्मांतरण गैंग पर ही नहीं, बल्कि तुर्की और चीन पर भी वार करने वाले हैं

 


भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए NGOs के जरिये चीन और तुर्की जैसे देश किसी भी हद तक चले जाते हैं और कुछ धर्म के प्रसार के नाम पर अवैध तरीके से लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका धर्म परिवर्तन कर अपना एजेंडा साधते हैं। इन सभी गतिविधियों को रोकने के लिए अब सरकार ने FCRA कानून को और प्रभावी बनाने के लिए संशोधन करने का फैसला किया है।

Foreign Contribution (Regulation) Act यानि FCRA कानून को संशोधन के लिए कल लोकसभा में प्रस्तुत किया गया। संशोधन के तहत किसी भी NGO के पंजीकरण के लिए उसके अधिकारियों के आधार नंबर आवश्यक होंगे और लोक सेवक यानि public servant के विदेशों मिलने वाले चंदे पर रोक लगेगी।

मसौदा विधेयक के अनुसार कि FCRA के तहत आने वाले सभी NGOs को कुल विदेशी फंड का 20 फीसदी से अधिक प्रशासनिक खर्च (Administrative Expenses) में इस्तेमाल नहीं करने होंगे। बता दें कि अभी ये सीमा 50 प्रतिशत है। वेतन, पेशेवर शुल्क, उपयोगिता बिल, यात्रा और ऐसे अन्य खर्चों के भुगतान के मामले में यह संशोधन NGOs के लिए एक बड़ा झटका होगा।

नए संशोधन के बाद कोई भी NGO जो FCRA के तहत रजिस्टर्ड है, वो विदेश से चंदा प्राप्त करने के बाद किसी दूसरे संगठन को हस्तांतरित नहीं कर सकता। यानि एक ग्रुप में काम करने वाली NGOs पर लगाम लगेगी।

इसके अतिरिक्त, सभी एनजीओ को एक निर्दिष्ट FCRA खाते में विदेशी दान प्राप्त करना आवश्यक होगा। यानि सरकार इन NGOs को मदद देने वालों पर भी नजर रख सकेगी। FCRA के तहत पंजीकृत एनजीओ को 2016-17 और 2018-19 के बीच 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी अनुदान मिला।

विधेयक के उद्देश्य और कारणों के बारे में कहा गया है कि, ‘Foreign Contribution (Regulation) Act 2010 को लोगों या एसोसिएशन या कंपनियों द्वारा विदेशी योगदान के इस्तेमाल को नियमित करने के लिए लागू किया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए विदेशी योगदान को लेने या इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है।’

भारत में इन विदेशी चंदों के नाम पर ही कई ईसाई धर्मांतरण और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है।

इसलिए 2011 में लागू कानून में दो बार संशोधन किया जा चुका है। संशोधन विदेशी अंशदान (योगदान) विधेयक, 2010 को लोगों या एसोसिएशन या कंपनियों के विदेशी चंदे के इस्तेमाल को नियमित (Regulate) करने के लिए लागू किया गया था।

अब इस कानून के नए संशोधन से न सिर्फ धर्मांतरण इंडस्ट्री को झटका लगेगा, बल्कि पाकिस्तान और तुर्की से मिलने वाले फंडों और देश में मौजूद चीन एजेन्टों को भी झटका लगेगा।

हाल ही की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि कैसे तुर्की NGO के जरिये भारत में भारत विरोधी गतिविधियों को फण्ड करता था और जम्मू-कश्मीर समेतम देश के अन्य राज्यों में भारत विरोधी गतिविधियों को वित्तीय मदद देता है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार तुर्की केरल और कश्मीर समेत देश के तमाम हिस्सों में कट्टर इस्लामी संगठनों को फंडिंग कर रहा है। खुफिया रिपोर्ट में बताया गया है कि तुर्की भारतीय मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाना और कट्टरपंथियों द्वारा उन्हें भर्ती करने में सहयोग दे रहा है।

एक दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि तुर्की जिन संगठनों के माध्यम से भारत विरोधी कार्यों को अंजाम दिया जाता है वह सीधे तौर पर एर्दोगन और उसके परिवार से जुड़े हैं। अब खुफिया अधिकारियों को यह अहसास हो रहा है कि इन संगठनों का भारत के अंदर पूर्व के आकलन से अधिक मजबूत जड़े हैं। इन संगठनों को तीन क्षेत्रों के माध्यम से निर्देशित किया जाता है: तुर्की स्टेट मीडिया, शैक्षणिक संस्थान और वहाँ के NGOs। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार जिन लोगों या ग्रुप को चिन्हित किया गया है, उनके संबद्ध पाकिस्तान की ISI से भी होने की आशंका है।

नार्थ ईस्ट में भी चीन एक्टिव होने की कोशिश में हैं और इन NGOs के जरिये उसका काम आसान हो जाता। पिछले वर्ष ही चीन द्वारा NGOs के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट रोकने की रिपोर्ट आई। चीन कई NGOs के माध्यम से भारत में यह रैकेट चला रहा है। कई बार तो पत्रकारों और अफसरों के भी ऐसे NGOs में हाथ होते हैं जिसके माध्यम से वे देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। अब इस कानून संशोधन से कुछ हद तक रोक लगेगी। वर्ष 2014 में सामने आई intelligence bureau की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अमनेस्टी, ग्रीनपीस और action aid जैसे गैर-सरकारी संगठन विदेशी सरकारों के पैसों के दम पर भारत में कोयले और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे।

कई रिपोर्ट्स में सामने आ चुका है किस तरह से इन NGOs का इस्तेमाल ईसाई धर्मांतरण इंडस्ट्री करती है। कई संगठनों पर कार्रवाई भी हो चुकी है। कुछ ही दिनों पहले 13 NGO को आदिवासियों के जबरन धर्मांतरण में सक्रिय होने के कारण उनके FCRA लाइसेन्स रद्द कर दिया गया था। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने  FCRA लाइसेन्स रद्द करने के साथ साथ इन सभी NGOs से संबन्धित बैंक अकाउंट को फ्रीज़ करने के निर्देश दिये हैं। वहीं पिछले वर्ष गृह मंत्रालय ने 1300 से अधिक NGOs की FCRA लाइसेन्स रद्द कर दिया था।

ऐसे में देश की आंतरिक सुरक्षा और धर्मांतरण के खिलाफ बड़े एक्शन के लिए सरकार ने संशोधन का फैसला किया है। आने वाले कुछ वर्षों में इन NGOs की कमर तुटनी तय है।

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