कंगना रनौत (kangna Ranaut) को लेकर 9 सितंबर को मची सियासी घमासान कब शांत होगी, अभी ये तो नहीं कहा जा सकता है. लेकिन जिस तरह से एक्ट्रेस के दफ्तर पर बीएमसी (BMC) का बुल्डोजर चला उसके बाद चारो तरफ से शिवसेना सरकार घिरी हुई नजर आ रही है. हर तरफ से महाराष्ट्र सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. मुंबई को लोग बदला मुंबई का नाम देने लगे हैं. क्योंकि कंगना के ऑफिस पर बुल्डोजर उस वक्त चला जब शिवसेना के साथ उनकी जुबानी जंग तेज हो रही थी. ऐसे में लोग इस मामले को बदले के भाव से देख रहे हैं क्योंकि अब मुंबई हाई कोर्ट ने भी यही सवाल खड़ा किया है कि जब दफ्तर की मालकिन वहां पर मौजूद नहीं थीं तो फिर बीएमसी किस आधार पर अंदर घुसी और तोड़फोड़ की.
फिलहाल इस मामले की आलोचना खुद शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने भी की है. BMC की ओर से लिया गया ये एक्शन अब उन्हीं पर भारी पड़ते हुए दिखाई दे रहा है. इसी मामले को लेकर हाल ही में महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना के सांसद संजय राउत ने आपसी मुलाकात की है. बताया जा रहा है कि तीनों आपस में सीएम आवास पर मिले. बता दें कि ये बैठक घंटे भर से ज्यादा समय तक चली. इस मीटिंग से पहले सीएम उद्धव ठाकरे से मिलने बीएमसी के कमिश्नर पहुंचे थे.
सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी की माने तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार की हुई मीटिंग में मराठा आरक्षण पर बातचीत हुई. इसी के साथ ही जिस तरह से एक्ट्रेस के दफ्तर पर बीएमसी का बुल्डोजर दौड़ा है उसको लेकर भी चर्चा हुई. इस दौरान मीटिंग में ये मुद्दा उठा कि एक्ट्रेस के दफ्तर पर कार्रवाई बीएमसी की तरफ से की गई है. इसमें राज्य सरकार की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है क्योंकि ये मसला राज्य के तहत नहीं आता है. इसलिए इस केस पर ज्यादा चर्चा नहीं की जानी चाहिए.
कंगना के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद शिवसेना पर लगातार लोग अपनी प्रतिक्रिया देने में लगे हैं. 90 फीसद लोग कंगना के पक्ष में बोल रहे हैं. यहां तक कि खुद शिवसेना के साथ गठबंधन वाली सरकार भी उनका समर्थन नहीं कर रही है. दरअसल एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने खुद BMC के इस कदम को गैर जरूरी करार दिया है. उन्होंने अपने दिए हुए बयान में कहा है कि इस कार्रवाई ने अनावश्यक रूप से कंगना को बोलने का मौका दे दिया है. क्योंकि मुंबई में अभी ऐसे बहुत से अवैध निर्माण हैं. हालांकि देखने वाली बात तो ये है कि अधिकारियों ने ऐसा फैसला क्यों लिया?
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