राफेल विमान सौदा एक फिर से सुर्खियों में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने बताया कि दसॉल्ट एविएशन ने विमानों की सौदे के वक्त 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान के बदले डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था। हल्के लड़ाकू विमान के इंजन कावेरी के विकास के लिए डीआरडीओ को यह तकनीक चाहिए थी। मगर दसॉल्ट एविएशन ने किया हुआ अपना वादा आज तक पूरा नहीं किया। बुधवार को संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत एक बड़े पैमाने पर विदेशों से हथियारों को खरीदता है। लेकिन हथियार बेचने वाली कंपनियां कांट्रेक्ट पाने के लिए तो ऑफसेट का वादा करती हैं लेकिन बाद में उसे पूरा नहीं करती हैं। इसी वजह से ऑफसेट नीति बेमानी मानी जा रही है। राफेल विमानों की खरीद का भी जिक्र इसमें किया गया है, जिसमें 2016 में राफेल के ऑफसेट प्रस्ताव का हवाला दिया गया है।
कैग के मुताबिक, डीआरडीओ इस तकनीक का प्रयोग हल्के लड़ाकू विमान के लिए स्वदेश में ही विकसित इंजन कावेरी के लिए करना चाहता है मगर अभी तक वेंडर ने तकनीक हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की गई। पांच राफेल विमानों का पहला बैच 29 जुलाई को भारत पहुंचा था। लगभग चार साल पहले भारत ने फ्रांस से 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की खरीद का सौदा किया था। इसके तहत कुल लागत का कम से कम 30 प्रतिशत खर्च कर कंपोंनेट की खरीद होनी थी।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 55 हार करोड़ रुपये के ऑफसेट अनुबंध अभी नहीं हुए हैं। इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है। इसमें ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है। देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के माध्यम से, निशुल्क तकनीक देकर और भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाना इसमें शामिल हैं। मगर कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया है कि यह नीति अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पा रही है। कैग ने कहा कि खरीद नीति में सालाना आधार पर ऑफसेट अनुबंध को पूरा करने का प्रावधान नहीं किया गया है। पुराने मामलों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि आखिर के दो सालों में ही अधिकतर कांट्रेक्ट पूरे किए जाते हैं।
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