मुंह में कालिख पोतकर खुद सजायाफ्ता हो जाओ!

 

अरविंद कांत त्रिपाठी

सफेद चमचमाता कुर्ता, पैजामा चढ़ाकर वह पक्के देशभक्त और अखंड-राष्ट्रवादी हैं। लेकिन असलियत यह नहीं है। उनके रोएं-रोएं में बसी बत्तमीजी, बेशर्मी, लफ्फाजी, लफंगई और टुच्चई समय-समय पर सामने आकर उनका परिचय कराती रहती है। देश का ऐसा ही एक परिचय इन दिनों ‘संजय राउत’ नामक उस आदमी से हो रहा है जिसकी असल हैसियत- ठाकरे परिवार की पीढ़ियों की जी हजूरी करने के अलावा और कुछ नहीं है। चरण-वन्दना के अलावा न जमीन है, न जमीर।
सियासती सांप-सीढ़ी के खेल में, जिंदगी में पहली बार बंदा तीन दलों की सरकार का कोआर्डीनेटर या सेटर कहलाने लगे हैं। वह ठीक से आचरण ही नहीं कर पा रहे है। बेअंदाजी ऐसी है कि किसी महिला को सरे-महफिल ‘हरामखोर’ बोलने से भी कोई पर​हेज नहीं रह गया है। यहां तक बोल बैठे कि उसका कोई बाप नहीं है। समझने वाली बात यह है कि जब सरेआम यह सब बोला जा रहा है, तो आड़ में…??

इस सबसे महिलाओं के लिए उनके कलेजे में कितने ‘वेद-वाक्य’ निहित हैं इसे समझना कठिन नहीं। लेकिन भाई! नेता हैं, माननीय हैं, वह भी शिवसेना का। तो परम-संस्कारिक और अखंड-राष्ट्रभक्त होने पर सवाल कहां? मुंबई, पाक अधिकृत कश्मीर हो गई है और मुंबई, पाक अधिकृत कश्मीर है। यह दो वाक्य हैं और इन दोनों के अर्थ में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क को चरण-चापन शिरोमणि राउत भी जानते हैं। मुंबई, पाक अधिकृत कश्मीर हो गई है- यहां छिपा भाव है। शिवसेना के शासन में मुंबई, पाक अधिकृत कश्मीर हो गई है। यह कंगना का आरोप है, इसे संजय राउत भी समझते हैं। लेकिन उन्होंने अपनी नाकामी पर उठने वाली उंगली को, मराठा-अस्मिता की ओर मोड़कर बचने का कुटिल प्रयास किया है।

वह शिवाजी महाराज के यश व पराक्रम की चादर ओढ़कर सियासी व्यापार करने वाले एक कुटिल व्यापारी दिख रहे हैं।
महाराष्ट्र की भूमि पर पैदा हो जाना और खुद से खुद को शिवाजी का अनुयायी घोषित करना ही, उनकी अव्वल दर्जे की राष्ट्रभक्ति है। लिहाजा उन्हें खुद की राष्ट्रभक्ति साबित करने की जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए भी है कि राष्ट्रभक्ति प्रमाण-पत्र छापेखाने के मालिक और मुख्तार भी हैं वही लोग हैं।

कंगना ने, मुम्बई के वर्तमान सिंहासन को तालिबानी कहा है, महाराष्ट्र को तालिबान नहीं। सुशांत घटना मामले को दबाने की कोशिश, गाली-गलौज के साथ पूरी जमात का एक महिला पर टूट पड़ना। उसे अपमानित करना। 24 घंटे की नोटिस में कंगना के ऑफिस को तहस-नहस कर देना आदि तालिबानी हरकत से अलग कहां है? हम फलां तारीख को मुंबई आएंगे, जो उखाड़ना है उखाड़ लो… मुंबई किसी के बाप का नहीं है। कंगना के यह अल्फ़ाज बेहद, बेहद, बेहद गलत हैं। लेकिन कंगना द्वारा कही गई यह बातें आसमान से गूंजने वाली आकाशवाणी नहीं बल्कि— खून की दलाली, वेश्या, चोर, कुत्ता, दलाल, सड़क का गुण्डा, भारत माता डायन है, रामजादे-हरामजादे, नाचने वाली, “कश्मीर किसी के बाप का नहीं है” जैसे अनगिनत शब्दों का अनवरत विकसित संस्करण है। कंगना भी इसी समाज व परिवेश की एक संख्या मात्र है।

विवेकानंद, तिलक, गांधी, टैगोर, अम्बेडकर, आजाद, भगत, बोस, सुखदेव जैसे महान त्यागी और बलिदानी जिस पीढ़ी के अभी-अभी के आदर्श रहे हों, जब यह पीढ़ी इतनी बेशर्म, बदमिजाज, निर्लज्ज और छिछोर हो गई है तो आज के माननीय जिस पीढ़ी के आदर्श हैं, वह कितनी पतोन्मुख होगी इसका अनुमान कठिन नहीं है। शिवाजी महाराज ने कभी किसी महिला को “हरामखोर” कहा था, उसे अपमानित किया था.. तो इतिहास में लिखा वह पन्ना दिखाओ वरना खून में थोड़ी भी सच्चाई हो, तो मुंह में कालिख पोतकर खुद सजायाफ्ता हो जाओ! क्योंकि तुम कंगना या किसी महिला के नहीं बल्कि आचरण की मर्यादा और चरित्र की सम्पदा से सम्पन्न, अप्रतिम योद्धा शिवाजी महाराज के स्वघोषित अनुयायी बनकर उनके यश को कलंकित करने के अक्ष्म्य अपराधी हो।

(लेखक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं)

आपको ये पोस्ट कैसी लगी नीचे कमेंट करके अवश्य बताइए। इस पोस्ट को शेयर करें और ऐसी ही जानकारी पड़ते रहने के लिए आप बॉलीकॉर्न.कॉम (bollyycorn.com) के सोशल मीडिया फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम पेज को फॉलो करें।


0/Post a Comment/Comments