महाकाल के इस मंदिर में पत्थरों से आती है डमरू की आवाज, एक बाबा की समाधि से जुड़ा है इसका राज!


भारत में वर्षों से प्राचीन मंदिरों की अपनी अलग मान्यता रही है, कई ऐसे अद्भुत, अविश्वसनीय मंदिर भारत में मौजूद हैं जिनका किसी न किसी के साथ कोई गहरा राज जुड़ा हुआ है. आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बात करने जा रे हैं जिसका राज एक बाबा की समाधि से जुड़ा हुआ है. और ये ना सिर्फ मामूली बाबा हैं इनकी शक्ति का आज भी यहां चमत्कार होता है. दरअसल इस मंदिर के बारें में ऐसा कहा जाता है कि यहां पत्थरों को थमथपाने पर डमरू जैसी आवाज आती है. यह विशालकाय मंदिर शिव का है जो एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. इस मंदिर के बारे में ऐसा दावा किया जाता है कि यहां महादेव का वास है. अकसर यहां कई अद्भुत चमत्कर होते हैं. जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. बता दें की यह मंदिर देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित है, जिसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की बनावट ही इसे खास बनाती है. इसके पत्थरों को किसी बेहतरीन शिल्पकार ने तराशा है. दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है.

इस मंदिर की की मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ वक्त के लिए रहे थे. बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए, जिनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में करीब 39 साल का वक्त लगा. करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि इसका निर्माण देश-विदेश के श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के पैसों से हुआ है. साल 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी.

हालांकि 1983 में बाबा ने यहां समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य रूका नहीं बल्कि इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी. वहीं, मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसे बेहद ही खास बना देता है. इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. इस मंदिर में हर तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं जबकि मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है.

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