‘एक बार दिखा दो बेटी का चेहरा’..मां लगाती रही गुहार, लेकिन पुलिसवालों ने करा दिया अंतिम संस्कार


पुलिस हो चाहे प्रशासन.. प्रशासन हो या चाहे सरकार.. अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो इस देश के लोगों का विश्वास सरकार पर से उठ जाएगा। मतलब.. साफ है कि अब इस मुल्क की आवाम की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है। इसकी तस्दीक किसी और ने नहीं बल्कि हाथरस गैंगरेप घटना ने अब साफतौर पर उस वक्त कर दी, जब ग्रामीणों के भारी विरोध-प्रदर्शन के बीच पुलिस वालों ने गैंगरेप पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया। गांववाले..पीड़िता के परिजन..गांव का एक-एक शख्स.. पुलिस वालों से अंतिम संस्कार न कराने की इल्तिजा करते रहे। जब लगातार उनकी इस इल्तिजा को अनसुना किया जाता रहा है तो फिर उन्होंने आक्रमकता का लबादा भी ओढ़ा.. लेकेिन अब शायद दादागिरी पर उतर आई पुलिस, प्रशासन और सरकार को आवाम की यह आवाज सुनना तनिक भी मुनासिब न लगा, लिहाजा अंत में पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया।

ग्रामीण सहित पीड़िता के परिजन पुलिसवालों से इंसाफ की गुहार लगाते रहे। दोषियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन अंतिम संस्कार कराने पर अमादा ये पुलिसवाले भला ग्राणीणों की बात कहां सुनने वाले थे। उन्हें तो बस जल्दी थी… तो एक बात  की कि कैसे भी करके पीड़िता का अंतिम संस्कार कराया जाए। लगाता है .. मानो कोई ऊपर से फरमान जारी कर दिया गया हो कि बिना अंतिम संस्कार कराए अपना मुंह न दिखाना। बता दें कि गैंगरेप पीड़िता का शव 12 : 45 मिनट पर हाथरस पहुंचा था। इस बीच जब एंबुलेंस को अंतिम संस्कार के लिए ले जााया  जा रहा था तो लोगों ने उसे रोक दिया। गांव वालों के विरोध प्रदर्शन के बीच एंबुलेंस पीड़िता के गांव में करीब रात 2 : 35 मिनट पर रुकी रही,  लेकिन 2 : 45 मिनट पर गांव वालों के विरोध प्रदर्शन के बावजूद भी पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया गया।

इस दौरान जब गांव वालों ने विरोध किया तो पुलिस वालों ने उनके साथ सख्ती भी बरती। आप गांव वालों के विरोध प्रदर्शन का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि गांववाले एंबुलेंस की गाड़ी के आगे भी लेट रहे थे। कह रहे थे कि हमें मार दो, लेकिन अंतिम संस्कार नहीं होने देंगे।

रोने लगीं मां  
इन बीच पीड़िता की मां एसपी और  डीएम से गुहार लगाती रही कि एक बार बीटिया के शव को घर ले चलो। एक बार उसे देखने दो, लेकिन एसपी और डीएम पीड़िता के पिता और भाई से पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार कराने के लिए कह रहे थे। वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इसका विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।  मगर.. इन सबका कोई फाय़दा नहीं हुआ और  परिजनों के विरोध के बावजूद भी पीड़िता का अंतिम संस्कार रात 2 : 45  मिनट पर करा दिया गया।

पुलिस ने की लापरवाही 
इस मामले को लेकर पुलिस के रवैये पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। परिजनों के मुताबिक,  पुलिस ने इस मामले की एफआईआर दर्ज करने में 8 से 10 दिनों की देरी की। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में शिथिल रवैया अख्तियार किया। पुलिस जब किसी एक आरोपी को पकड़ती तो दूसरे को छोड़ देती। लेकिन जब लोगों का विरोध अपने शबाब पर पहुंचा तो 10 से 12 दिनों के विरोध प्रदर्शन के बाद आरोपियों को पकड़ा गया।

 यह है पूरा मामला 
याद दिला दें कि यह घटना 14 सितंबर की है, जब पीड़िता अपनी मां के साथ खेत में चारा काटने गई हुई थी। चारा काटने के दौरान पीड़िता अपनी मां से थोड़ा दूर हुई तो खेत में मौजूदा  चार युवकों ने पीड़िता को उसके दुपट्टे से खींचकर उसके साथ दरिंदगी की वारदात को अंजाम दिया। इसके बाद उसे मरा समझकर वहां से फरार हो गए। इसके बाद जब पीड़िता की मां सहित उसके परिजन बेटी को ढूंढते हुए पहुंचे तो इस पूरे घटना के बारे में पता चला।  इसके बाद… कल.. यानी की 29 सितंबर  को दिल्ली के सफ्दरजंग अस्पताल में जिंदगी  और मौत से जंग लड़ने के बाद पी़ड़िता इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गई।

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