शिक्षा और रोजगार में मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

भारतीय संविधान में आरक्षण को इसलिए तरजीह दी गई थी कि दलित, शोषित समाज को बराबरी का हक मिल सके। लेकिन समय के साथ आरक्षण अब राजनीति का हिस्सा हो गया है। यही कारण है कि जिस आरक्षण को अब तक खत्म कर दिया जाना चाहिए था वह आज सभ्य समाज के लिए नासूर हो गया है। खैर इन राजनीतिक रस्साकशी के बीच सुप्रीम कोर्ट की ओर से सामंजस्य बैठाया जा रहा है। इसी कड़ी में शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से संबंधित महाराष्ट्र सरकार के 2018 के कानून के अमल में लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दिया है। साथ ही स्पष्ट किया है कि जिन लोगों को इसका लाभ मिल चुका है उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा।

न्यायाधीश एल. नागेश्वर राव, न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश एस. रवीन्द्र भट की पीठ ने इस मामले को वृहद पीठ का सौंप दिया है। इसका गठन जीफ जस्टिस एसए. बोबडे करेंगे। बता दे कि इन याचिकाओं में शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वर्ष 2018 के कानून का जो लोग लाभ उठा चुके हैं उनकी स्थिति में अब कोई बदलाव नहीं किया जायेगा।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने वर्ष 2018 में मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून बनाया था। इस पर बंबई उच्च न्यायालय ने बीते वर्ष जून में इस कानून को सवाल उठाते हुए कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायसंगत नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं किया जाना चाहिए।

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