क्या आपको मालूम है भगवान लोधेश्वर महादेव का इतिहास?

लोधेश्वर महादेव का प्रख्यात मन्दिर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले में स्थित है। यह मन्दिर बाराबंकी में रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर पर स्थित है। ये भगवान लोधेश्वर महादेव लोधी राजपूतों के कुल देवता कहलाते हैं, जिनकी स्थापना स्वयं पाण्डवों ने की थी। चूँकि पाण्डव चन्द्र वंश के थे और इसी कुल में महाराज बुध भी हुये थे। इसलिए पण्डवों ने चन्द्रवंश के मूल लोध गुणी भगवान शिवलिंग की स्थापना यहाँ की थी।
लोधेश्वर धाम के ऐतिहासिक प्रमाणः
इस पूरे इलाके में पांडव कालीन अवशेष बिखरे पड़े हैं। जब अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ छुपे थे, बाराबंकी को बराह वन कहा जाता था और यहाँ घने और विशाल जंगल थे। वर्षों तक पांडव यहाँ छुपे रहे और इसी दौरान उन्होंने रामनगर के पास किंतूर क्षेत्र में पारिजात वृक्ष लगाया और गंगा दसहरा के दौरान खिलने वाले सुनहरे पुष्पों से भगवान शिव की आराधना की। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि इस पारिजात वृक्ष को भगवान कृष्ण स्वर्ग से लाये थे और अर्जुन ने अपने बाण से पाताल में छिद्र कर इसे स्थापित किया था। ऐसे महान महादेवा परिक्षेत्र के दर्शन कर श्रद्धालु अपने को धन्य समझते हैं।
साल में लगते हैं चार मेला:
लोधेश्वर महादेवा में वर्ष में चार बड़े-बड़े मेला लगते हैं। जिसमें अगहनी मेला का विशेष महत्व है। अज्ञातवास के समय माता कुंती अपने पुत्रों के साथ घाघरा नदी के दक्षिण तटीय रेणुक वन में पहुंचे। जहां महामुनि वेद व्यास ने 12 वर्ष तक शिवार्चन, पूजन एवं महारुद्राभिषेक करने की सुमति दी। जिसके लिए माता कुंती के आदेश पर महाबली भीम बद्रीनाथ व केदारनाथ के पर्वतीय अंचल में गए और वहां से बहंगी में कंधे पर लादकर दो शिलाखंड लाए। पारिजात ग्रंथ में हैं विवरण लोधेश्वर महादेव की शिवस्थापना के संदर्भ में अवधी सम्राट महाकवि गुरुप्रसाद ¨सह मृगेश के लोक महाकाव्य ग्रंथ पारिजात में विशद वर्णन है।

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