भारत AIIB का सह-संस्थापक है, भारत के पास यहाँ से पैसे निकालने का पूरा अधिकार है, यह चीनी कर्ज़ नहीं है


देश की राजनीतिक पार्टियां और सरकार विरोधी तत्व अकसर सरकार की आलोचना करते-करते भारत देश को बदनाम करने लगते हैं। ऐसा ही हमें भारत-चीन के बीच जारी विवाद के दौरान भी देखने को मिल चुका है। इसी कड़ी में अब देश के कुछ प्रोपेगैंडावादी लोगों ने देश में यह भ्रम फैलाना शुरू कर दिया है कि भारत सरकार एक तरफ तो बॉर्डर पर चीन के छक्के छुड़ाने की बात कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ वह चीन से कर्ज़ भी मांग रही है। चलिये इन्हीं दावों की सच्चाई का पता लगाते हैं।

दरअसल, अभी Telegraph जैसे अखबार यह रिपोर्ट कर रहे हैं कि भारत सरकार ने “चीनी बैंक” AIIB यानि “Asia Infrastructure Investment Bank” से 750 मिलियन डॉलर का कर्ज़ लिया है और अब भारत पर AIIB का कुल कर्ज़ 9,202 करोड़ रुपये हो गया है।

Telegraph ने अपने इस लेख में भारत सरकार पर व्यंग करते हुए लिखा “विदेश मंत्रालय चीन के साथ अब कभी “Business as usual” नहीं करने की बात कर रहा है, केंद्र सरकार देश में चीनी व्यवसायों को निशाने पर ले रही है। हालांकि, खुद सरकार आपसी वित्तीय लेन देन को द्विपक्षीय रिश्तों से अलग कर रही है”। खैर ये तो बस शुरुआत थी, खबर के सामने आने के बाद कांग्रेस, लिबरल पत्रकार और पूरा लेफ्ट तंत्र मोदी सरकार से यह सवाल पूछने लगा कि आखिर उसने AIIB से कर्ज़ क्यों लिया? ये सभी लोग AIIB को “चाइना का बैंक” बताकर भारत सरकार पर हमला करने लगे। INC नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो AIIB को “चीन का सरकारी बैंक” घोषित कर दिया। इस मुद्दे पर राहुल गांधी ने भी ट्वीट किया, राहुल ने अपना “तेज दिमाग” चलाकर लोगों के सामने एक क्रोनोलोजी ही पेश कर दी।

अब ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम AIIB के बारे में थोड़ा जान लें। बेशक AIIB एक चीन आधारित बैंक है, जिसका head quarter बीजिंग में है, लेकिन यहां यह बात समझने वाली है कि भारत भी इस बैंक का सह-संस्थापक है और चीन के बाद यहां भारत के ही सबसे ज़्यादा शेयर्स हैं। इस बैंक में 100 से ज़्यादा देशों के शेयर्स हैं, जिसमें चीन के 26 प्रतिशत शेयर्स के बाद 10 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत का ही नंबर आता है। भारत ने इस बैंक में करीब 8.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है।

AIIB न तो चीनी बैंक है और ना ही वह CCP के अधीन है। वह एशिया के अलग-अलग देशों के साथ मिलकर शुरू किया गया एक Joint Venture है, जहां भारत दूसरा सबसे बड़ा निवेशक है। अब अगर भारत इस बैंक से कर्ज़ लेता है, तो इसका अर्थ यह है कि भारत वहाँ निवेश किया अपना ही पैसा निकाल रहा है।

AIIB से कर्ज़ लेना भारत की कमजोरी या मजबूरी नहीं, बल्कि हमारा पूरा अधिकार है। इसे एक नज़रिये से देखा जाये तो हम AIIB को दिया गया अपना ही पैसा वापस ले रहे हैं और अपना पैसा वापस लेना तकनीकी रूप से “कर्ज़” नहीं कहलाएगा। हालांकि, यह लॉजिक हमारी विपक्षी पार्टियों और एजेंडावादियों को समझ आए, तब बात बने ना! ये लोग आज मोदी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन इन्हें ऐसा करने से पहले तथ्यों और देशहित का भी ख्याल करना चाहिए!

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