भारत ने चीन को ईरान में 29.8 मिलियन डॉलर का झटका दिया है


आर्थिक मोर्चे पर भारत सरकार कागजी ड्रैगन को उसकी औकात बता रही है, वहीं ईरान के चाबहार पोर्ट का महत्व एक बार फिर इस परिप्रेक्ष्य में सामने आया है। हाल ही में एक ऐसा निर्णय लिया गया है, जिसके कारण एक बार फिर चीन को आर्थिक झटका लग सकता है।

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने तीन साल पहले चीनी बंदरगाह क्रेन बनाने वाली कंपनी Shanghai Zhenhua Heavy Industries Co Ltd (ZPMC) के साथ चार रेल-माउंटेड क्यू क्रेन (आरएमक्यूसी) खरीदने के लिए 29.8 मिलियन डॉलर का अनुबंध किया था, जिसे ईरान में चाबहार बंदरगाह में स्थापित करने की तैयारी थी। दो एशियाई दिग्गजों के बीच बढ़ते तनाव के बीच अब भारत बिलकुल नहीं चाहता की रणनीतिक रूप से अहम किसी भी विदेशी परियोजना में चीन कहीं से भी सम्मिलित हो। इसीलिए भारत ने अब 65 टन की क्षमता वाले चार नए पोस्ट-पनामैक्स RMQCs खरीदने के लिए एक नया टेंडर भी जारी किया है।

ये निर्णय इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि 23 जुलाई को केंद्र सरकार ने एक अहम निर्णय में कहा था कि 23 जुलाई के पश्चात किसी भी सार्वजनिक अथवा केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत प्रोजेक्ट में चीनी निवेश को कोई जगह नहीं देगी। हालांकि, आधिकारिक तौर पर ZPMC के साथ डील रद्द करने के पीछे कारण दिया है कि चीनी कंपनियाँ आवश्यक गियर का निर्माण करने में देरी कर रही थी। इस विषय पर बिज़नेस लाइन ने एक सरकारी अफसर के हवाले से बताया, “इस ऑर्डर की शब्दावली को बहुत ध्यान से लिखा गया है, ताकि चीनी सप्लायर्स पर सीधी तरह आरोप न लगे। परंतु इतना तो पक्का कि अब से चीन को किसी भी तरह से चाबहार पोर्ट का हिस्सा नहीं बनने दिया जाएगा। ZPMC इसलिए भी चाबहार पोर्ट को बनते नहीं देखना चाहता क्योंकि ये पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से महज 90 किलोमीटर दूर होगा”।

जिस प्रकार से भारत ने चाबहार पोर्ट में  ZPMC की सक्रियता पर प्रहार किया गया है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे भारत न केवल अपने देश की सीमाओं, बल्कि उसके बाहर भी अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम हो चुका है। ये निर्णय तब लिया गया है जब भारत के रक्षा मंत्री एवं विदेश मंत्री, यानि राजनाथ सिंह एवं सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अपने ईरानी समकक्षों के साथ पिछले कुछ दिनों में उच्च स्तरीय बैठकों में हिस्सा लिया था।

भारत ने चाबहार में शहीद बेहिश्ती पोर्ट (Shaheed Beheshti Port) को विकसित किया गया है, जहां इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने 2018 में पोर्ट की कमान संभालने के पश्चात अपना दफ्तर खोला है। इस पोर्ट के चलते भारत पाकिस्तान को बाईपास कर ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, यूरोप और यहाँ तक कि रूस के साथ व्यापार कर सकता है। इससे भारत ग्वादर पोर्ट के जरिये बढ़ रही चीनी सक्रियता को भी नियंत्रित करने में सक्षम होगा जो चाबहार से केवल 90 किलोमीटर दूर है।

चीन इस तथ्य को भली भांति जानता है, इसलिए वह ईरान को खरीदने के लिए  एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा है ताकि यूरोप तथा मध्य एशिया तक भारत के व्यापार करने के प्रयास को वो असफल कर दे। इसलिए, चीन अगले 25 वर्षों में ईरान में $ 400 बिलियन का निवेश करने के लिए तैयार है, ताकि ईरान भी अन्य देशों की भांति उसके कर्ज़ जाल में फंस जाये।

हालाँकि, चीन की इस योजना को भारत ने विफल कर दिया है और चीन को उसी कि भाषा में जवाब देते हुए उसके आर्थिक पक्ष पर प्रहार किया है। अब चीन का मिडिल ईस्ट पर कब्जा जमाने का सपना इतनी आसानी से पूरा नहीं होगा।

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