आरक्षण को लेकर देश में जमकर सियासत की जा रही है। राजनीतिक दल इसको लेकर राजनीति रोटियां सेंक रहे हैं। शायद यही कारण है कि इसका जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। वहीं एससी—एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने आज बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को यह शक्ति दी है कि प्रदेश में एससी—एसटी समुदाय को दिए गए आरक्षण में कैटेगरी निर्धारित कर सकते हैं और इसका लाभ उन जरूरतमंदों को दिया जा सकता है जो इन कैटेगरी में होने के बाद भी इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने फैसले में वर्ष 2004 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश के उस फैसले की समीक्षा करने को भी कहा है जिसमें राज्यों को यह अधिकार नहीं था कि वह एससी—एसटी आरक्षण का उप-वर्गीकरण कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर विचार करने के लिए 7 जजों की बैंच को भेजा है। न्यायाधीश अरुण मिश्रा की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि इससे राष्ट्रपति के आदेश के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होगी। बेंच ने स्पष्ट किया है कि अगर राज्य के पास आरक्षण देने का अधिकार है तो उनके पास यह भी शक्ति है वह यह सुनिश्चित करे कि इसका लाभ सभी का मिल सकें। सभी को लाभ पहुंचाने के लिए वह इसका उप-वर्गीकरण करे। बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा के साथ इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे।
गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के बाद यह अपील की गई थी। पंजाब सरकार के एससी—एसटी समुदाय की भर्ती में 50 फीसद बाल्मिकी और मजहबी सिखों को वरीयता में प्रमुखता दिए जाने के फैसले को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। फिलहाल ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षण की राजनीति करने वालों को बल मिलेगा।
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