कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती – बिना हाथों वाली शेफ ‘Maricel Apatan’ की संघर्षपूर्ण कहानी!

यह महज कोई कहानी नहीं, बल्कि एक सच्ची घटना है। यह कहानी है एक ऐसी महिला की, जिसने जीवन में कई कठिनाइयाँ झेलीं और आज वो एक कामयाब शख्सियत है। जब आपको उसकी परेशानियों के बारे में पता चलेगा तो उसके सामने अपनी बड़ी से बड़ी परेशानी भी बहुत छोटी लगेगी।

इस कहानी की शुरुआत होती है 25 सितंबर, 2000 को। जमबोआंगा में रहने वाली 11 साल की लड़की मैरिकेल ऐप्टैन उस दिन अपने अंकल के साथ पानी लेने जा रही थी। रास्ते में उन्हें चार आदमी मिले, जो उनके ही पड़ोस में रहते थे। सभी के पास चाकू थे। उन लोगों ने मैरिकेल के अंकल को जमीन पर झुकने को कहा। उनके आदेशानुसार अंकल जमीन पर बैठ गए और सिर नीचे झुका लिया। तभी उन आदमियों ने उनका गला रेत दिया। उनकी इस हरकत पर मैरिकेल सन्न रह गयी। वह जान बचाने के लिए भागी पर उन्होंने उसे पकड़ लिया। मैरिकेल जान बचाने क लिए बहुत गिड़गिड़ाई पर उन चारों का दिल नहीं पसीजा। एक आदमी ने मैरिकेल का भी गला रेत दिया। मैरिकेल बेहोश हो गयी।

कुछ देर बाद उसे होश आया तो चारों आदमी वहीं पर मौजूद थे। वह अपनी जान बचाने के लिए मरने का नाटक करने लगी। सांस रोक कर वह उनके जाने का इंतजार करने लगी। उनके जाते ही मैरिकेल अपने घर ही तरफ दौड़ पड़ी। जब वह अपनी जान बचाने के लिए दौड़ रही थी, तब उसे अहसास हुआ कि उन लोगों ने उसकी दोनों हथेली भी काट दी थी। रास्ते में वह कई बार बेहोश हुई। किसी तरह वह अपने घर पहुँची और माँ को आवाज़ लगायी। मैरिकेल खून से लथपथ थी। उसकी यह हालात देख माँ चीख पड़ीं। माँ ने तुरंत उसे कंबल से लपेटा ताकि खून का बहना रुक सके।

लेकिन उनकी समस्या यहीं खत्म नहीं होने वाली थीं। दरअसल उनके घर से हाइवे 12 किलोमीटर दूर था। माँ-बेटी को वहीं पहुँचने में चार घंटे लग गये। जब वे अस्पताल पहुँचे तो मैरिकेल की स्थिति बहुत ही नाजुक थी। डॉक्टरों ने हर तरह की उम्मीद छोड़ दी थी। फिर भी उन्होंने ऑपरेशन शुरू किया। ऑपरेशन थियेटर में पाँच घंटे बिताने और 25 टांके लगने के बाद किसी तरह मैरिकेल की जान बची। हालाँकि वह अपनी दोनों हथेली को खो चुकी थी।

इस घटना के अगले दिन मैरिकेल का जन्मदिन था। वह 12 साल की हो गयी थी पर ऐसा लगता था कि मुसीबत इस परिवार का पीछा छोड़ने वाली नहीं थी। उनके पीछे बदमाशों ने उनके घर को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया था। उनकी आर्थिक हालात इतनी बुरी तरह से चरमरा चुकी थी कि परिवार के पास अस्पताल का बिल देने के लिए भी रुपये नहीं थे। लेकिन कहते हैं न कि भगवान बेसहारों की मदद के लिए दूत भेजते हैं। मैरिकेल के परिवार के लिए दूर के एक रिश्तेदार आर्च बिशप एंटोनियो लेडेसमा (Archbishop Antonio Ledesma) दूत बनकर आये। उन्होंने न केवल अस्पताल का बिल चुका दिया बल्कि दोषियों को सलाखों के पीछे पहुँचाने में भी मदद की। समय अपनी गत‌ि से चलता रहा। अन्य लोगों की तरह मैरिकेल भी अपना जीवन जी रही थी और मेहनत कर रही थी।

आज मैरिकेल रेजिना रोजरी (Regina Rosarii) में ननों के साथ रहती है। मैरिकेल ने नयी जिंदगी की शुरुआत जिस तरह से की वह काबिले तारीफ है। भगवान को कोसने के बजाय उसने जीने का ज़ज्बा कायम रखा। उसने अपनी कलाइयों को हाथों की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। अक्षम बच्चों के स्कूल में मैरिकेल सबसे मेहनती और उत्साही छात्रा थी। कम्‍प्यूटर में भी वह सबसे आगे रही। 2008 में उसने होटल और रेस्टोरेंट मैनेजमेंट से स्नातक किया। कला में उसने स्वर्ण पदक भी जीता। 2011 में उसने शेफ की पढ़ाई पूरी कर ली। आज वह बिना हाथों वाली शेफ है। वास्तविक विजेता कभी हार नहीं मानते।

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