इतिहास उन तमाम घटनाओं को साक्षी मानकर इस बात की तस्दीक करता है कि जब-जब आर्थिक संकट का दौर आया है, तब-तब हुकूमत के छत्रछाया में पल रहे संस्थान निजीकरण के हवाले हुए हैं। चाहे वो 1991 की नई आर्थिक नीति का दौर हो या फिर हालिय स्थिति में पनपनी सरकार की मंशा। दोनों में ही काफी हद तक समानता नजर आती है। अब रेलवे को ही ले लीजिए..पिछले काफी दिनों से केंद्र सरकार इसे निजीकरण का जामा पहनाने की दिशा में प्रयास कर रही है। अगर हम तेजस एक्सप्रेस की तरफ नजरें गड़ाए तो मालूम पड़ेगा कि काफी हद तक इसमें सरकार को सफलता भी मिली है, मगर सरकार के हालिया कदम से यह परिलक्षित हो रहा है कि जब तक सरकार इसे मकुम्मल तौर पर निजीकरण का लबादा न ओढ़ दे, तब तक सरकार चैन से नहीं बैठने वाली है।
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, चूंकि अब केंद्र सरकार IRCTC के एक हिस्से को बेचने की तैयारी में जुटी है। इसके लिए पूरी तैयारी भी हो चुकी है। वो कैसे? वो ऐसे कि वित्त वर्ष यानी 2020-21 में विनिवेश से सरकार 2.1 लाख करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। सरकार इसे अपनी एक महत्वाकांक्षी योजना का अहम हिस्सा भी बनाना चाहती है। याद दिला दें कि गत वर्ष IRCTC का आईपीओ आने के बाद वैसे ही इसमें सरकार की हिस्सेदारी घटकर 87.40 फीसदी तक रह गई थी। इसके साथ ही विनिवेश IRCTC में हिस्सेदारी बेचने के लिए मर्चेंट बैंकर और सेलिंग ब्रोकर्स की नियुक्ति भी शुरू कर दी है। यह बिक्री OFS के द्वारा की जाएगी। ओएफएस के लिए प्री-बिड मीटिंग हो चुकी है और अब बिडिंग प्रक्रिया 11 सितंबर से शुरू हो सकती है।
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