आयोजनों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा- पर्व और पर्यावरण में है गहरा नाता


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काबीलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह जब भी कोई बात कहते हैं तो उसमें देश की सभ्यता व संस्कृति झलकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे पर्व और पर्यावरण के बीच बहुत गहरा संबंध है। मौजूदा समय उत्सव का चल रहा है। इस समय जगह—जगह मेले लगते है, धार्मिक अनुष्ठान व पूजा—पाठ होते हैं। इसी के चलते कोरोना के इस संकट की घड़ी में लोगों में उमंग और उत्साह के साथ—साथ मन को छू लेने वाला अनुशासन भी दिख रहा है। उन्होंने कहा, लोग अपना, दूसरों का ख्याल रखते हुए अपने रोजमर्रा के काम भी निपटा रहे हैं।

उन्होंने देश में हो रहे हर आयोजनों का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखने को मिल रहा है, वह अभूतपूर्व है। कुछ जगहों पर गणेशोत्सव भी ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो अधिकत्तर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है। पीएम मोदी ने कहा कि इन पर बारीकी से देखें, तो एक बात समझ में आती है- हमारे पर्व और पर्यावरण। इन दोनों के बीच हमेशा से बहुत गहरा नाता रहा है। हमारे सभी पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सह जीवन का संदेश छिपा हुआ है तो वहीं कई सारे पर्व प्रकृति की रक्षा के लिए ही मनाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री ने थारू आदिवासी समाज की बरना नामक परंपरा को याद करते हुए उसकी सराहना की। उन्होंने मिशाल देते हुए कहा कि बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में 60 घंटे के बरना का पालन करते हैं। थारू समाज के लोगों ने प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और यह सदियों से चली आ रही है। बरना के दौरान न कोई गांव में आता है, न ही कोई अपने घरों से बाहर निकलता है। इस समाज के लोगों का मानना हैं कि अगर वह बाहर निकले या कोई बाहर आया, तो उनके आने-जाने से नए पेड़-पौधों को नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि बरना की शुरुआत में भव्य तरीके से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजापाठ करते हैं और उसकी समाप्ति पर आदिवासी परंपरा के गीत, संगीत, नृत्य के कार्यक्रम भी करते हैं।

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