रक्षाबंधन विशेषः जानिए, आधुनिक भारत में राखी के त्यौहार की सबसे पुरानी कथा

रक्षाबंधन भाई और बहन के क्रमशः दायित्व और अधिकारों का पर्व है, जिसमें दोनों तरफ़ से रिश्तों को पोषण मिलता है। हिन्दुओं में यह युगों से मनाते आया जा रहा है, लेकिन एक बात ग़ौर करने लायक है कि रक्षाबंधन के सन्दर्भ में पहले तो प्रत्येक युग में एक या उससे अधिक दंतकथाएँ हैं। इसके बाद हर युग में अलग-अलग कालखण्ड या फिर कई बार कल्प भेदों में एक ही युग की कई कथाएँ प्रचलित हैं। ये सभी कथाएँ रूपकों सहित सत्य हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसा सिर्फ़ प्राचीन या युगीन काल भर में नहीं है, बल्कि आधुनिक भारत में भी रक्षाबंधन के दिलचस्प प्रमाण मिलते हैं। तो आइए आज आधुनिक भारत में राखी के त्यौहार की सबसे पुरानी कथा के बारे में जानते हैं।
जी हाँ, आपको बता दे कि राखी के त्यौहार की सबसे पुरानी कहानी 300 बीसी में मिलती है जब अलेक्जेंडर ने भारत को जीतने के लिए अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आया था। उस समय भारत में सम्राट पुरु का काफी बोलबाला था। चूँकि अलेक्जेंडर भारत में कभी किसी से भी नहीं हारा था, लेकिन उसे सम्राट पुरु की सेना से लड़ने में काफी दिक्कत हुई। ऐसा प्रतीत हुआ कि सम्राट पुरु अलेक्जेंडर का परास्त कर देंगे।
ऐसे में इस स्थिति से निपटने के लिए जब अलेक्जेंडर की पत्नी को रक्षाबंधन के बारे में पता चला तब उन्होंने सम्राट पुरु के लिए एक राखी भेजी थी, जिससे कि वो अलेक्जेंडर को जान से न मार दें। वहीं पुरु ने भी अपनी बहन का कहना माना और अलेक्जेंडर पर हमला नहीं किया था। आधुनिक भारत में रक्षाबंधन की यब सबसे प्राचीन और दिलचस्प कहानी मिलती है।
आपको बता दें कि राजा पुरुवास यानी कि राजा पोरस का राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान लाहौर के आस-पास इसकी राजधानी थी। इस प्रकार, राजा पोरस यानी कि सम्राट के राज्य में सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था। यक़ीनन राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे।

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