मिसालः खोए बच्चों को उनके परिवारों के साथ लाने वाले माइक मूर्ति

माइक मूर्ति मेला, बाज़ार या कहीं और किसी दूसरी तरह से भी अपने माँ-बाप से बिछड़ गये बच्चों को उनसे मिलाने का काम करते हैं और अब तक माइक मूर्ति ने पिछले 50 सालों में 48,000 बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवाया है। ऐसे में आप माइक मूर्ति के शानदार काम का अंदाज़ा लगा सकते हैं। आपको बता दें कि माइक मूर्ति तमिलनाडु के रामेश्वरम् के रहने वाले हैं। उनके इस काम के बारे में जानने से पहले ये जानना काफी दिलचस्प है कि उनका नाम माइक मूर्ति कैसे पड़ा।
आपको बता दें कि इनका असली नाम मूर्ति है। लेकिन इनके नाम के आगे माइक इसलिए लगा दिया गया क्योंकि इनकी आवाज़ काफी अच्छी और बुलंद है। उनकी इसी आवाज़ के हुनर को देखकर एक पुलिस वाले ने इन्हें एनाउसिंग का काम दे दिया था, जो बाद में इसके जीवन का उद्देश्य जा बना। जी हाँ, आपको जानना चाहिए कि लगभग 54 साल पहले 1964 में रामेश्वरम के एक होटल में मूर्ति की आवाज की तरफ आकर्षित होकर एक पुलिस इंस्पेक्टर ने 10 साल के मूर्ति को पहली बार खोए हुए बच्चे की घोषणा करने के लिए पुलिस विभाग की तरफ से नियुक्त किया था।
वास्तव में मूर्ति ने तब सोचा भी नहीं था कि यह काम उनके जीवन का उद्देश्य बनने जा रहा है। जिले के आईजी ने मूर्ति की पहली घोषणा पर खुश होकर उन्हें 100 रुपए दिए थे। उस समय यह एक बड़ी रकम थी। तब से पुलिस विभाग ने मूर्ति को बड़े-बड़े धार्मिक उत्सवों में भीड़-भाड़ के दौरान बुलाना शुरू कर दिया।
इस 50 साल के सफर में मूर्ति ने तमिल, इंग्लिश, मराठी, हिंदी, गुजराती, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में भी घोषणा करना सीख लिया जिसके कारण रामेश्वरम जैसे मशहूर तीर्थ स्थल पर भी उन्हें बुलाया जाने लगा। मूर्ति के लिए वह पल बहुत संतोषप्रद होता है जब खोया हुआ बच्चा अपने माता पिता से मिलता है। बहुत वर्षों बाद मिलने पर भी माता-पिता माइक मूर्ति का धन्यवाद करना नहीं भूलते हैं।

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