मिसालः आँखों की रोशनी न होने के बावजूद आईएएस बनीं प्रांजल पाटिल

प्रांजल पाटिल मुम्बई से सटे उल्हासनगर की रहने वाली हैं। जब वह महज 6 बरस की थीं, तो प्रांजल के साथ पढ़ने वाले एक बच्चे ने उसकी एक आंख में पेंसिल से प्रहार कर दिया थ। इस घटना से उपजे रेटिनल डिटेचमेंट के कारण उसकी बायीं आंख की रोशनी चली गई थी। डॉक्टरों ने उनके माता-पिता को इस घटना के बाद ही चेतावनी दी थी कि प्रांजल की दूसरी आंख की रोशनी भी जा सकती है। होनी को शायद यही मंज़ूर था। दुर्भाग्य से डॉक्टरों की चेतावनी सही साबित हुई और एक साल के भीतर ही प्रांजल ने अपनी दूसरी आंख की रोशनी भी खो दी।
लेकिन वास्तव में प्रांजल पाटिल एक बेहद होनहार छात्रा रही हैं। आपको बता दें कि प्रांजल के पिता का नाम एलबी पाटिल है और इनकी मां का नाम ज्योति पाटिल है। इन लोगों ने बताया कि प्रांजल बचपन से ही पढ़ने में तेज थी। ऐसे में यक़ीनन अपने भविष्य के बारे में प्रांजल ने बहुत से सपने बुने थे, लेकिन ये सपने उन्होंने अपनी आँखों से नहीं देखे, क्योंकि अब तो प्रांजल की आँखें ही नहीं थीं। इस तरह से प्रांजल पाटिल ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि सपने आँखों से नहीं देखे जाते हैं।
ग़ौरतलब है कि प्रांजल पाटिल ने साल 2016 में अपने पहले ही प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 733वीं रैंक हासिल की थी। प्रांजल को उस समय भारतीय रेलवे लेखा सेवा (आईआरएएस) में नौकरी आवंटित की गई थी। तब ट्रेनिंग के समय रेलवे मंत्रालय ने उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया था। इसके लिए रेलवे मंत्रालय ने प्रांजल की सौ फीसदी नेत्रहीनता को कमी का आधार बनाया था।
आपको बता दें कि इसके बाद भी प्रांजल ने न तो आईएएस बनने का अपना छोड़ा और न ही इसके लिए आये अवरोधों से घबराकर अपने प्रयास ही बंद किये। इसका फल यह रहा कि वर्ष 2017 में फिर से प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा पास की और इस बार उन्होंने 124वीं रैंक हासिल की। इसी के साथ प्रांजल का आईएएस बनने का सपना पूरा हो गया। यक़ीनन प्रांजल उन हज़ारों-लाखों लोगों के लिए एक मिसाल हैं, जो अपनी सफलता में अपनी किसी न किसी चीज़ को रोड़ा मानते हैं।

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