अजा एकादशी में ऐसे करें भगवान विष्णु को खुश, पढ़ें ये स्तोत्र और आरती

 

इस बार 15 अगस्त, शनिवार को अजा एकादशी का व्रत किया जाएगा। अजा एकादशी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। अजा एकादशी का व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु को एकादशी तिथि बहुत प्रिय है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किया जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है वह इस लोक में तो सुखों को भोगता ही है, इसके साथ ही मृत्यु के बाद एकादशी के व्रत के प्रभाव से वह श्री बैकुंठ धाम को जाता है। वैष्णव भक्त भगवद्दर्शन की इच्छा से भी एकादशी का व्रत किया जाता हैं। कहा जाता हैं कि एकादशी के व्रत का फल इतना ज्यादा होता है कि वह भक्त को भगवान विष्णु की भक्ति में लगाए रखता है।

श्री हरि स्तोत्रम्:
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं।
नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं।।
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं। ग
दाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं।।
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारं।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं।।
जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं।
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं।।
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं।
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं।।
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं।।
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं।
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं।।
रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागं।
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं।।
फलश्रुति: इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं, पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो।।

विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ॐ॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ॐ॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ॐ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंर्तयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ॐ॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ॐ॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ॐ॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे॥ॐ॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ॐ॥
तन-मन-धन, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ॐ॥”

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