मिसालः राजस्थान के नो-कंस्ट्रक्शन जोन वाले गांव राजघाट की क़िस्मत बदलने वाले अश्विनी पाराशर

अश्विनी पाराशर राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले हैं। इन्होंने जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई की है। राजघाट गाँव इनके इनके शहर धौलपुर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर चंबल के बीहड़ में बसा है। एक बार जब अश्विनी पाराशर ने इस गाँव का जायजा लिया तो यहाँ की स्थिति इनकी कल्पना से परे थी। विकास की सैकड़ों योजनाएँ होने के बाद भी यह गाँव मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर था। लोग पीने के पानी के लिए चंबल नदी पर ही निर्भर थे, जिसमें अक्सर इंसानों औक जानवरों की लाशएं बहकर आती थीं और लोगों को उन्हें हटाकर पानी लेना पड़ता था।
इतना ही नहीं, चूँकि राजघाट घड़ियाल अभ्यारण्य के इलाक़े में आता है तो किनारे से ज़रा दूर जाकर पानी भरने में घड़ियालों और मगरमच्छों का भी ख़तरा था। गाँव के कई नौजवान मगरमच्छों का शिकार भी हो चुके थे। इसके अलावा पढ़ाई के लिए यहाँ मात्र एक कमरे और एक शिक्षक वाला प्राथमिक स्कूल था। स्वास्थ्य और राशन लेने की तो कोई सुविधा ही नहीं थी। सच पूछिये तो राजघाट गाँव में पिछड़ेपन का आलम यह है कि इसके कारण बीस वर्षों में महज दो ही शादियाँ हो सकी हैं, क्योंकि इसके पिछड़ेपन के कारण यहाँ कोई शादी करने के लिए तैयार ही नहीं होता है।
आपको बता दें कि अश्विनी पाराशर ने इस गाँव को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास शुरू क दिये। ये ज़िले के प्रशासनिक अदिकारियों से मिलकर इसका हल निकालने की कोशिश करते रहे, लेकिन इन्हें कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। इसके बाद इन्होंने राजघाट की स्थिति को लेकर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख दी। फिर जब पीएमओ से राजस्थान के मुख्य सचिव के नाम चिट्ठी आयी तो वहाँ की व्यवस्था हिल गयी और देखते ही देखते आशातीत गति से राजघाट गाँव का कायाकल्प शुरू हो गया।
इसके लिए अश्विनी पाराशर कोर्ट में भी लड़ाई लड़ते रहे, जिसमें इन्हें विजय मिली तो कोर्ट ने भी गाँव का विकास करने के लिए आदेश दिया। अश्विनी पाराशर के प्रयासों से सदियों बाद रोशन हुये राजघाट गाँव में अब वॉटर फ़िल्टर सहित सोलर पैनल भी है।

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