मंगलसूत्र पहनने के पीछे क्या कहता है विज्ञान?

मंगलसूत्र वैवाहिक जीवन का एक प्रतीक है, जो भौतिक रूप से एक पवित्र धागा है। अगर इसे सही तरीक़े से किया जाये यानी कि मंगलसूत्र का सही ढंग से निर्माण किया जाये और इसे नियम के साथ धारण किया जाये तो इसका प्रायोजन बड़ा अद्भुत है। हममे से बहुत ही कम लोगों को ये बात पता होगी कि इस धागे को ख़ास तरह से बनाया जाता है, जिसे धारण करने के बाद हर साल मंगलसूत्र को बदलना होता है। जी हाँ, मंगलसूत्र को हमें हर साल बदलना होता है। हालाँकि अब ऐसा नहीं होता है, क्योंकि आजकल मंगलसूत्र कुछ और नहीं बल्कि केवल और केवल सोने की एक मोटी चेन है।
आपको बता दें कि हमारी भारतीय परंपरा और ज्ञान-विज्ञान के अनुरूप जब मंगलसूत्र बनाया जाता था तो इसे कच्चे सूत के धागे से ख़ास तरह से बनाया जाता था या फिर कई बार ये कच्चे रेशम के धागे से भी बनाया जाता था। इसके पीछे एक पूरा का पूरा विज्ञान है, जिससे अपनी ऊर्जाओं को कई तरह से उपयोग करके हम उसे लाभ में लेते हैं। जी हाँ, मंगलसूत्र बनाने का एक तांत्रिक तरीक़ा है, जिसमें शरीर की 72,000 नाड़ियों में से एक ख़ास नाड़ी को आपके होने वाले पति के सिस्टम से एक ख़ास तरह की नाड़ी को लेकर ख़ास तरह से इस धागे को बाँधा जाता है, जिसे मंगलसूत्र कहते हैं।
तो जब आपका शारीरिक मिलन होता है, तो ये सिर्फ़ शरीर का ही सम्पर्क नहीं, बल्कि दो लोगों की ऊर्जाओं की भी एक विशेष सन्धि हो जाती है। विवाह के बाद अब आप इसे तोड़ नहीं सकते। यदि आपने ऐसा किया तो फिर आप दोनों लोगों को ही गम्भीर नुकसान पहुँचाना होगा। उन्हें चीरकर अलग करना होगा। इसलिए पहले विवाह के बन्धन में लोगों को इस तरह से बाँधा जाता था कि उनमें स्थिरता रहे और इस स्थिरता उन्हें इतनी शक्ति मिलती थी कि वो जीवन में जो कुछ भी करना चाहते थे उस पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर सकते थे।

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