सभी फैसले सड़क पर ही क्यों चाहते हैं ये लोग, आखिर कब तक चलेगा ऐसा?

 

हाल के वर्षों में देश संविधान से चलता है, कानून का पालन करना हर नागरिक का धर्म है, कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होगा आदि इत्यादि बातों को लेकर खूब बहस हो रही है। सबके अपने तर्क हैं, अपने कानून हैं। कुछ लोग देश के कानून व संविधान को बचाने के नाम पर सड़क पर इसका मजाक बना रहे हैं और तो वहीं इसका पालन कराने वाले ऐसे लोगों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं। संविधान बचाने के नाम पर देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, लोगों के घरों में आग लगाना, निर्दोषों पर हमले करना यह तो भारतीय संविधान में है नहीं। तो ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मुस्लिम समाज के लोग किस संविधान को बचाने के नाम पर यह उत्पात मचा रहे हैं। इस वर्ग के लोग हमेशा देश के कानून से ऊपर जाने का प्रयास आखिर क्यों करते हैं? क्या उन्हें देश के कानून व संविधान पर भरोसा नहीं है? क्या इनके हिसाब से हर फैसला न्यायालय की जगह सड़क किया जाना चाहिए?

12 अगस्त को बेंगलुरु एक विवादित पोस्ट के चलते जिस तरह मुस्लिम समाज के लोग सड़कों पर उतरकर आराजकता का नंगा नाच किया उसे किसी भी सभ्य समाज व देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता। यहां के कांग्रेस विधायक श्री निवास मूर्ति के भतीजे की ओर से हिंदू धर्म के खिलाफ किए गए विवादित पोस्ट पर भड़काऊ जवाब देना इतना भारी पड़ गया कि मुस्लिम समाज के लोग सड़कों पर उतर आए। सड़कों पर उतरी भीड़ ने न सिर्फ विधायक का घर आग के हवाले किया बल्कि कई गाड़ियों व थाने को भी जलकर राख कर दिया। दो सौ के करीब पुलिसवाले घायल हुए हैं जबकि चार लोगों के मारे जाने की खबर है। सवाल यह है कि विधायक के भतीजे ने अगर विवादित पोस्ट किया भी था तो इसके लिए थाना है, कोर्ट है, भीड़ को इंसाफ करने का अधिकार किसने दे दिया। लेकिन इस वर्ग विशेष की आदत हो गई है कि वह अपने फैसले खुद अपने तरीके से करेंगे। शायद यही कारण है कि लोग खुलकर इस वर्ग विशेष का उल्लेख करने से डरते हैं। लोगों के जेहन में कानून से ज्यादा इनके आतंक का खौफ है। इसके कई प्रमाण भी है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीते वर्ष हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की उनके ही कार्यलय में हत्या कर दी गई थी। हत्या का कारण सिर्फ इतना था कि उन्होंने मुस्लिम समाज के पैगंबर पर विवादित टिप्पणी कर दी थी। इसके चलते वह जेल भी गए। लेकिन इस वर्ग के लोगों को यह दिखाना था कि वह कानून से ऊपर हैं जिसके चलते उनकी हत्या कर दी गई। वहीं नगरिकता संशोधन कानून को लेकर देश को जलाने की जो कोशिश हुई वह किसी से छिपी नहीं है। 11 दिसंबर को संसद से पारित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने केवल इस लिए बवाल काटना शुरू कर दिया क्योंकि इसमें बाहरी मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है।

आलम यह हुआ कि 23 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में यही मुद्दा दंगे का कारण बना। इस दंगे में आईबी अधिकारी सहित कई निर्दोषों की हत्या कर दी गई। मजे की बात यह है कि सीएए के विरोध में इस वर्ग विशेष की तरफ संविधान बचाओ के नाम पर जो प्रदर्शन किया जा रहा है वह खुद ही संविधान के खिलाफ है। क्योंकि ये लोग उस कानून के विरोध में धरना दे रहे है जो संसद से पारित होकर मूर्त रूप में आया है। इसके विरोध में न सिर्फ अशिक्षित हैं बल्कि पढ़े लिखे—लिखे और कानूनविद से जुड़े लोग भी शामिल हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि इस वर्ग विशेष के लोग सब कुछ जानते हुए भी खुद को कानून से ऊपर होने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।

फिलहाल बेंगलुरु की घटना के बाद यह मांग उठने लगी है कि आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा। धर्म—मजहब के नाम पर आतंक राज पर अंकुश आखिर कब लगेगी। खैर सोशल मीडिया के आ जाने से जिन तथ्यों पर पर्दा डाल दिया जाता था। आज वह खुलकर सबके सामने आ रहे हैं, जिसके चलते लोग गलत को गलत कहने में अब कोई संकोच नहीं कर रहे हैं। जरा—जरा सी बात पर कानून को हाथ में लेने वालों को भी सोचना होगा कि इस तरह उनकी मनमानी अब नहीं चलने वाली है। देश के संशाधनों पर अगर उनका हक है तो देश के कानून को उन्हें हर हाल में मानना ही पड़ेगा।

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