एनकाउंटर और गिरफ्तारी तक सीमित रह गई पुलिस, कैसे खुलेंगे असलहों के राज?


कानपुर के बिकरू गांव कांड के बाद पुलिस जिस तरह से हरकत में आई थी उससे लग रहा था कि इस बार कोई बड़ा खुलासा होगा। यह कयास लगाया जाने लगा था कि विकास दुबे जैसे अपराधियों को संरक्षण देने वाले बड़े चहरे बेनकाब होंगे। लेकिन विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद से जैसे—जैसे समय बीतता जा रहा है अन्य मामलों की तरह यह भी ठंडा होता जा रहा है। ऐसा लगने लगा है कि इस मामले में भी बड़ी मछली कानून के दायरे से बाहर ही रहेगी। पुलिस के मुताबिक बिकरू गांव कांड के दिन 28 लाइसेंसी और कई अवैध असलहों के साथ दो सेमी आटोमेटिक रायफल से पुलिस टीम पर गोलियों की बौछार किया गया था। जबकि पुलिस अब तक दो लाइसेंसी रायफल और पांच तमंचे केवल बरामद कर पाई है।

गौरतलब है कि बिकरू गांव कांड के बाद जांच में पता चला था कि पुलिस की दबिश के दौरान रायफल, सेमी ऑटोमेटिक, पिस्टल सहित अन्य हथियारों से हमला किया गया था। इस दौरान सीओ देवेंद्र मिश्र सहित आठ पुलिस कर्मी शहीद हो गए थे। इस कांड के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ विकास दुबे सहित छह एनकाउंटर किए थे। इस मामले में अब तक 32 लोगों को जेल भेजा जा चुका है, लेकिन पुलिस असलहों के जखीरे का पता लगा पाने में नाकाम साबित रहे हैं। सूत्रों की मानें तो जेल भेजे गए सभी आरोपितों का कहना है कि विकास को असलहा मुहैया कराए थे और बाद में वापस भी ले लिए गए थे।

पुलिस की मानें तो वह इस उम्मीद पर चल रही है कि विकास के भाई दीपू की गिरफ्तारी के बाद हो सकता है असलहों का जखीरा बरामद हो सके। एसटीएफ की टीम कानपुर नगर और कानपुर देहात की पुलिस के साथ ही असलहों की बरामदगी के लिए संयुक्त प्रयास शुरू कर दिया है। एसपी ग्रामीण बृजेश श्रीवास्तव का कहना हैं कि विकास और उसके गुर्गों के लाइसेंसी और अवैध शस्त्र बरामद करने के लिए टीमों को एक बार फिर से लगाया गया है। पुलिस अभी तक आरोपियों की गिरफ्तारी में व्यस्त थी, लेकिन अब असलहों की बरामदगी पर ध्यान दिया जा रहा है।

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