गुमनामी में जी रहा राम मंदिर आंदोलन का ये ‘हीरो’, 6 हजार की नौकरी से कर रहा गुजारा

अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है, हर तरफ खुशी उमंग और उत्साह देखने को मिल रहा है, लेकिन इस खुशी को जन्म देने वाली संघर्ष की कुछ गाथाएं अब गुमनामी में जीवन जी रहे हैं, तीस साल पहले 1990 में राम मंदिर के लिये आंदोलन करने वाले तथा 1992 में विवादित ढांचा गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही किसी को याद होगा या पता होगा।

राम मंदिर आंदोलन के हीरोसुरेश बघेल को उस दौर में मंदिर आंदोलन का हीरो कहा जाता था, उन्होने आंदोलन की चोट अपने माथे पर ली थी, इतना ही नहीं उस चोट की दर्द को पिछले तीस सालों से कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल धमकियां और परिवार से दूरी के साथ झेल रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन में शामिल रहने वाले कई लोगों को बड़े पद और प्रतिष्ठा मिली, कई लोग सत्ता सुख भोग रहे हैं, लेकिन बघेल एक ठेकेदार के नीचे निजी कंपनी में 6 हजार रुपये महीने की नौकरी कर गुजारा कर रहे हैं, कभी किसी ने उनकी कोई सुध नहीं ली।

मंदिर जरुर बनेगासुरेश बघेल ने एक निजी न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा कि मुझे बहुत खुशी हो रही है, राम सभी के अराध्य हैं, हालांकि राम मंदिर का मेरा सपना तो 1992 में ही पूरा हो गया था, तभी भरोसा हो गया था कि एक दिन मंदिर जरुर बनेगा। उन्होने बताया कि साल 1985 तक मैं एक मामूली बढई थी, आश्रमों में लकड़ी का काम करता था, पहली बार 1986 में बीजेपी के एक प्रदर्शन में शामिल हुआ, उसमें बड़े-बड़े नेता शामिल थे, हमारी पहली बार गिरफ्तारी हुई, अच्छा लगा, नया-नया जोश तो, तो वृंदावन लौटकर एक समिति बनाई, समाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगा, तभी 1990 में अयोध्या राम मंदिर का आंदोलन शुरु हुआ, हर तरफ नारे और शोर था, मैंने भी महंतों-संतों के साथ कार सेवा में शामिल होने का फैसला लिया, 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या के लिये रवाना हो गया।

डायनामाइट लेकर घुस गये थेबघेल ने कहा कि हम अयोध्या पहुंचे, तो सैकड़ों मौतों से सन्नाटा और दुख पसरा था, नेताओं ने कहा कि गिरफ्तारी देंगे और घर लौट चलेंगे, लेकिन हम ठहरे सीधे सच्चे आदमी, हमें तो राजनीति करनी नहीं थी, मैंने कहा कि ढांचे पर मैं हमला करुंगा, और इसे गिराकर रहूंगा, तीन बार मैं वहां घुसा, तीसरी बार हम दो लोग शिवसैनिकों की मदद  से लंगोट में डायनामाइट बांधकर बाबरी ढांचे के परिसर में घुस गये, लेकिन उसे उड़ाने से पहले ही गिरफ्तारी हो गई, सिर्फ मैं पकड़ा गया, आंदोलनकारियों में हड़कंप मच गया, तब सपा की सरकार थी, मुझ पर सेक्शन-5 विस्फोटक पदार्थ एक्ट तथा धारा 153ए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, 10 दिन पुलिस रिमांड पर रहा, जमानत हुई, तो फिर रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया, वहां से भी जब मैं बरी होने वाला था, तो मुझे पर टाडा लगा दिया, 1997 में जेल में मेरा अनशन करने के बाद टाडा हटाया गया, लेकिन बाकी मुकदमे चलते रहे, फिर 2008 में मुझे 5 साल जेल और 4 हजार रुपये जुर्माने की सजा हुई, फिलहाल जमानत पर हूं। उन्होने बताया कि 5 से 6 बार गिरफ्तार हुआ हूं, एक बार सरेंडर किया, करीब साढे तीन साल जेल में बिता चुका हूं, मुझे इतना उत्पीड़ित किया गया कि टाडा में गिरफ्तार के दौकान 114 दिनों तक कोर्ट में पेश नहीं किया गया था।

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