दुनिया में आने से पहले पिता की मौत, मां ने शराब बेचकर पाला, बेटा IPS फिर बनें IAS पढ़े संघर्ष से भरी कहानी

जिन लोगों को भी लगता है कि कामयाबी की राह में उनके परिवार की आर्थिक तंगी रोड़ा है, वो राजेन्द्र भारुड़ की जिंदगी से प्रेरणा ले सकते हैं, राजेन्द्र जब अपनी मां के गर्भ में थे, तभी पिता की मौत हो गई, तीन भाई-बहनों और मां के सिर पर पक्की छत तक नहीं थी, दो समय की रोटी भी मुश्किल से मिलती थी, मजबूरी में मां ने शराब बेचना शुरु कर दिया, शराब लेने के लिये आने वाले लोग स्नैक्स लाने के बदले कुछ पैसे राजेन्द्र को दे दिय करते थे, उन्हीं पैसों से राजेन्द्र ने किताबें खरीदी और मन लगाकर पढाई की, नतीजा वो पहले आईपीएस बनें, फिर आईएएस बनें।


आदिवासी समाज से पहले आईएएस
डॉ राजेन्द्र भारुड़ मूलरुप से महाराष्ट्र के धुले जिले के समोडा के रहने वाले हैं, गरीबी में पैदा हुए, ऐसे में आईएएस तक का सफर आसान नहीं था, 
लेकिन राजेन्द्र की मां की हिम्मत और खुद के बुलंद इरादों के दम पर उन्होने इतिहास रचा, वो महाराष्ट्र के भील समाज से आईएएस बनने वाले पहले युवक हैं।



गन्ने की खर-पतवार से बनी झोपड़ी में बीता बचपन
मीडिया से बात करते हुए राजेन्द्र ने अपने बचपन के संघर्ष की कहानी बताते हुए कहा कि मैंने कभी पिता बंडू भारुड़ को नहीं देखा, मेरे जन्म से पहले वो दुनिया से विदा हो चुके थे, 
परिवार की हालत ऐसी थी, कि उनकी कोई तस्वीर भी नहीं है, मुझसे बड़े एक भाई और एक बहन है, पिता की मौत के बाद समाज के लोगों ने मेरी मां कमलाबाई से कहा था कि गर्भपात करवा ले, तीन-तीन बच्चों को कैसे पालेगी, लेकिन मेरी मां ने ना सिर्फ मुझे जन्म दिया, बल्कि मेहनत-मजदूरी कर मुझे पाला-पोसा, उस समय हमारे सिर पर छत भी नहीं था, गन्ने की खर-पतवार से बनी झोपड़ी में बचपन बीता।

मां ने शराब बेचकर पाला
पिता के गुजर जाने के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मां पर आ गई, क्योंकि बच्चे छोटे थे, तो कमलाबाई ने मजदूरी का काम शुरु किया, तब 10 रुपये दिहाड़ी मिलती थी, लेकिन 10 रुपये में चार लोगों का पेट नहीं भर पाता था, जब राजेन्द्र 2-3 साल के रहे होंगे, तो उनकी मां ने देसी शराब बेचने का काम शुरु किया, भूख से बिलखते राजेन्द्र को चुप कराने के लिये उनकी मां और दादी अकसर एक-दो बूंद शराब पिला देती थी, ताकि चुपचाप भूखा ही सो जाए, इतनी गरीबी के बावजूद मां कमलाबाई ने राजेन्द्र का दाखिल स्कूल में करवाया, शराबियों से स्नैक्स के बदले मिले पैसे से किताबें खरीदी, राजेन्द्र ने बताया कि वो अपनी झोपड़ी के बाहर एक चबूतरे पर बैठकर पढाई किया करते थे।

शराबी देते थे पैसे
राजेन्द्र ने बताया कि मां के पास शराब लेने के लिये आने वाले लोग बच्चे राजेन्द्र से स्नैक्स और सोडा आदि मंगवाते थे, बदले में कुछ पैसे दे देते थे, 
इन्हीं पैसों से उन्होने किताबें खरीदी, ये सिलसिला कई सालों तक चलता रहा, तमाम मुश्किलों के बावजूद राजेन्द्र का ध्यान पढाई से नहीं हटा, बारहवीं में 90 प्रतिशत, उससे पहले दसवीं में 95 प्रतिशत अंक हासिल किया।

मेडिकल कॉलेज में एडमिशन
दसवीं तथा बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद राजेन्द्र को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया, यहां उन्होने पूरी लगन से पढाई की, 2011 में वो कॉलेज के बेस्ट स्टूडेंट चुने गये, उसी दौरान आईएएस बनने की दिशा में कदम बढाया, यूपीएससी का फॉर्म भरा, पहली ही कोशिश में परीक्षा पास कर ली, लेकिन इस बार वो आईपीएस बने, हालांकि उनका सपना आईएएस बनने का था, दूसरी बार फिर कोशिश की, तो इस बार कलेक्टर बनने का ख्वाब पूरा हो गया। जब समोडा में नेता तथा अधिकारी राजेन्द्र को बधाई देने उनके घर पहुंचे, तो उनकी मां को पता चला कि बेटा अफसर बन गया है, मां को तो यूपीएससी का मतलब भी नहीं पता था।

लोग मारते थे ताना
राजेन्द्र भारुड़ की किताब सपनों की उड़ान के अनुसार मां को शराब बेचते और मुझे पढते देख लोग अकसर ताना मारते थे, वो कहते थे कि भील का लड़का है भील ही रहेगा, 
मां की तरह ये भी एक दिन शराब ही बेचेगा, ये ताने सुनकर मां ने कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो, बेटे की पढाई नहीं रुकने देगी, हालांकि जब आईएएस बनें, तो वही लोग गर्व महसूस करने लगे, जो कभी ताना मारते थे। फिलहाल राजेन्द्र की तैनाती नंदूरबार जिले में है।

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