करोड़ों का मकान, शानदार अंग्रेजी, लेकिन सड़क किनारे छोले कुल्चे बेचने पर मजबूर है ये महिला

हालात कब बदल जाए, किसी को पता नहीं, सोशल मीडिया पर एक महिला की स्टोरी तेजी से वायरल हो रही है, दरअसल इस महिला ने अपने हौसलों के बूते परेशानियों को चित कर दिया, जिसकी वजह से उनकी तारीफ तो बनती है, ये कहानी है गुरुग्राम के उर्वशी यादव की, जिन्होने परेशानियों में हार मानने के बजाय डटकर उसका सामना किया, आइये आपको बताते हैं आत्मविश्वास से भरी इस महिला की कहानी
गुरुग्राम में शादी
उर्वशी यादव की शादी गुरुग्राम के एक संपन्न परिवार में हुई, मां-बाप ने लाखों रुपये खर्च किये, उनके पति अमित यादव एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करती थे, बड़ा घर था, सुख-सुविधाएं भी भरपूर थी, 31 मई 2016 तक तो सब ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक उनकी जिंदगी में भूकंप आ गया, अमित का भयानक एक्सीडेंट हो गया, जिसकी वजह से डॉक्टर को कई सर्जरी करनी पड़ी, लाखों रुपये खर्च हुए, अमित को नौकरी छोड़नी पड़ी। वो परिवार में इकलौते कमाने वाले थे, इसलिये आमदनी भी बंद हो गई, कुछ समय तो जैसे-तैसे करके गुजारा चला, लेकिन खर्चे ज्यादा था, और कमाने वाला कोई नहीं, बच्चों की स्कूल फीस, घर का राशन, अमित की दवाई, ऐसे ही ना जाने कितने खर्चे, उर्वशी ने फैसला लिया, कि वो कुछ काम करेगी, ताकि घर आसानी से चल सके।

स्कूल में पढाने लगी
वैसे तो इससे पहले उर्वशी ने कभी नौकरी नहीं की थी, लेकिन उनकी अंग्रेजी अच्छी थी, इस वजह से उन्हें एक नर्सरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई, वो बच्चों को पढाने लगी, समय अच्छा गुजरने लगा, लेकिन इस नौकरी से जो पैसे मिलते थे, उससे घर खर्च नहीं चल पाता था, हालांकि कहते हैं ना डूबते को तिनके का सहारा, इसलिये ये सोचकर उर्वशी ने काम जारी रखा। लेकिन साथ-साथ वो दिमाग लगाती रही, कि आखिर क्या करें, अब वो कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे ज्यादा पैसे आ सकें, ताकि सब ठीक हो जाए, उर्वशी को पढाने के अलावा सिर्फ खाना बनाना आता था, लेकिन छोटी सी दुकान खोलने के लिये भी पैसे की जरुरत थी, वो अपने सगे-संबंधियों से पैसे लेना नहीं चाहती थी, इसलिये उन्होने फैसला लिया, कि दुकान ना सही पर छोटा सा ठेला तो लगा ही सकती हैं।

घर वालों ने किया विरोध
उर्वशी यादव ने जब अपने फैसले के बारे में घर वालों को बताया, तो सबने उनका विरोध किया, सभी ने ये कहते हुए उन्हें रोका, कि तुम पढी लिखी हो, अच्छे परिवार से नाता रखती हो, सड़क किनारे ठेले पर खड़ी होगी, पता नहीं कैसे-कैसे लोग आते हैं, ये काम तुम्हें बिल्कुल शोभा नहीं देगा, लेकिन उर्वशी के सामने दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा था, इसलिये उन्होने गुरुग्राम के सेक्टर 14 में ठेले पर छोले-कुलचे का काम शुरु कर दिया।

मेहनत रंग लाई
कड़ी धूप और चूल्हे से निकलती आग चमड़ी को झुलसाने के लिये आमदा थी, लेकिन समय के मार के आगे ये कुछ भी नहीं था, कुछ ही दिनों में उर्वशी की मेहनत रंग लाई,
लोग उनके छोले-कुलचे के अलावा उनके लहजे के भी कायल हो गये, क्योंकि वो लोग पहली बार अंग्रेजी बोलने वाली महिला को ठेले पर छोले-कुलचे बेचते देख रहे थे, हर तरफ उनकी बात फैलने लगी, दूर-दूर से कस्टमर उनके पास आने लगे, आलम ये था कि शुरुआत में ही रोजाना वो 2-3 हजार रुपये की बिक्री कर लेती थी।

पति भी काम पर लौटे
उर्वशी ने ना सिर्फ अपने परिवार को संभाला बल्कि एक सफल बिजनेसवुमेन बनकर उभरी, इस दौरान पति अमित भी ठीक होकर काम पर लौट गये, धीरे-धीरे चीजें सामान्य होने लगी,
उर्वशी ने अपने ठेले को रेस्तरां में बदल दिया, जहां अब भी छोले कुलचे के अलावा खाने-पीने की दूसरी चीजें मिलती है।

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