मिसालः अमेरिका की नौकरी छोड़ स्लम की महिलाओं के लिए काम कर रही हैं गीता बोरा

गीता बोरा समाज की उन शख़्सियतों में से हैं, जिन्हें संवेदनाएँ महसूस होती हैं। लेकिन सिर्फ़ इतना ही नहीं, कि संवेदनाओं को महसूस भर कर लिया जाये। बल्कि उस अनुभूति के साथ कोई फैसला लेना और फिर उसके अनुरूप ख़ुद में बदलाव साकर आगे काम करते जाना अपने आप में ये बहुत भारी काम और ऐसा काम कर जाने वालों में कुछ गिने-चुने लोग ही होते हैं गीता बोरा उन्हीं चंद लोगों में से एक हैं।
आपको बता दें कि गीता बोरा मूल रूप से महाराष्ट्र के पुणे शहर की रहने वाली हैं। इन्होंने कम्प्यूटर साइंस से पीएचडी की है और साल 2002 में इन्होंने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया जिसके माध्यम से दूरस्थ और अल्पविकसित छात्रों तक शिक्षा की पहुँच सहज और बेहद सरल तरीक़े स पहुँचा सकते हैं। इसके बाद गीता बोरा बेहतर संभावनाओं की तलाश में अमेरिका चली गयीं और एक बेहतर मौक़े मिलते ही वहीं बस गयीं। लेकिन दूसरों के लिए कुछ बेहतर करने का भाव उन्हें कचोटता रहा।
ऐसे ही गीता बोरा एक बार जब इंडिया में थीं तो उन्हें स्लम में रहने वाली महिलाओं की महावारी से संबंधित परेशानियों के बारे में पता चला। ये इस बात को जानकर एकदम से दंग रह गयी थीं कि स्लम में रहने वाली महिलाएँ महावारी के दिनों में सेनेटरी पैड की अनुप्लब्धता के कारण फटे ब्लाउज का इस्तेमाल करती हैं। इससे कई महिलाओं की मौत भी हो चुकी है।
वास्तव में ये सब जानकर गीता बोरा दंग थीं और इसके बाद से इन्होंने अमेरिका छोड़ दिया और भारत में ही रहकर स्लम की महिलाओं की बेहतरी और ख़ासकर उनके स्वास्थ से संबंधित चीज़ों को कैसे बेहतर किया जाये इस दिशा में काम कर रही हैं।

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