आपने किसी मायावी धारावाहिक या फ़िल्म में इसे देखा होगा। कि कोई अपने शरीर से अपनी आत्मा को एक प्रक्रिया के माध्यम में डाउनलोड कर यानी कि उसे स्वतंत्र रूप से निकाल कर प्राप्त कर लेता है और फिर उस स्वतंत्र आत्मा को अपने कंट्रोल में लेकर किसी दूसरे की शरीर में अपलोड यानी की प्रवेश करा देता है। ऐसे वह बार-बार कर सकता है। आपको बता दें कि आत्मा की इस डाउनलोडिंग और अपलोडिंग प्रक्रिया को शास्त्रों में ‘परकायप्रवेशनम्’ के नाम से जाना गया है, जिसकी शास्त्रीय श्रुतियाँ मिलती हैं।
जी हाँ, आपने वह घटना अवश्य सुनी होगी जबआदि गुरु शंकराचार्य और मण्डन मिश्र में शास्त्रार्थ चल रहा था। मण्डन मिश्र के धारणाओं का खण्डन रुक नहीं रहा था और पराजय तय होने वाला था, तभी उनकी पत्नी भारती गरजी, “ठहरो, पत्नी अर्धांगिनी होती है। अभी आधा ही शास्त्रार्थ हुआ है। जब मुझे भी हरा दोगे, तभी तुम्हारी विजय मानी जायेगी।” एक नारी के साथ शास्त्रार्थ! कोई उपाय न देख आदिशंकर को तैयार होना पड़ा।
मण्डन मिश्र की पत्नी ने एक ऐसा प्रश्न पूछा, जिसका उत्तर कोई ब्रह्मचारी नहीं दे सकता था; वह गृहस्थ दे सकता था, जो पत्नी के साथ समागम के बारे में जानता हो। शंकर अचंभित। अंत में उन्होंने एक निर्णय लिया। अपने शिष्यों को अपने शरीर के सुरक्षा का आदेश देकर वे गहन योगनिद्रा में चले गये। अपने शरीर से अपनी आत्मा को डाउनलोड किया और तुरन्त एक मरे हुए शरीर में अपनी आत्मा को अपलोड कर दिया।
ऐसे में फिर उचित समय पा कर समागम का अनुभव लेकर फिर उस शरीर से भी डाउनलोड होकर उसे पुनः निष्प्राण कर दिया और इसके बाद आदि शंकर वापस अपने शरीर में अपलोड होकर भारती के प्रश्न का सटीक उत्तर दे दिया और सबको आस्चर्य कर दिया था। वास्तव में यह परकायप्रवेशनम् से ही सम्भव हो पाया था।
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