गहरे सन्घर्षों से सनी पड़ी है सीफिया हनीफ की कहानी, अब दूसरों को कर रही हैं प्रेरित

इस दुनिया में हर किसी को अपनी पड़ी है। किसी के पास आप बैठो कि किसी के आपकी सुनने की फिकर नहीं दिखेगी। हाँ, वो घंटों अपने तरह-तरह के दुख ज़रूर आपको सुना सकता है। ऐसी बेदर्द दुनिया में सीफिया हनीफ की कहानी आपको भीतर तक ज़रूर स्पर्श कर जाएगी। जी हाँ, आपको बता दें कि सीफिया हनीफ का महज 16 बरस की उम्र में निकाल करा दिया गया था। जिसके बाद 20 साल की होते-होते सीफिया दो-दो बच्चों की माँ भी बन गयी थी। मालूम हो कि सीफिया हनीफ के दर्द का कगार तो तब फट पड़ा जब एक दिन अचानक से सीफिया हनीफ के पति की एक हादसे में मौत हो गयी।
अब यहाँ से सीफिया हनीफ की ज़िन्दगी सन्घर्षों के दूसरे मोड़ पर थी, क्योंकि एक ही झटके में परिवार की बारी ज़िम्देददारी उनके कंधों पर जा गिरी थी। लेकिन सीफिया हनीफ ने क़ुद क मज़बूत बनया और इस चुनौती को पार करने के साथ-साथ इस दिशा में भी काम करने की सोची कि ज़िन्दगी को गुलज़ार कै से रखा जाये और इस दिशा में उन्होंने काम करना शुरू कर दिया।
आपको बता दें कि सीफिया हनीफ ने सबसे पहले ख़ुद को शिक्षित करने की सोची और पार्ट टाइम काम करके अपनी पढ़ाई पूरी की। ऐसे ही एक बार नौकरी के सिलसिले में वो बंगलौर गयीं तो जिन्होंने उन्हें बुलाया था वो फोन तक नहीं उठाया। लिहाजा दो दिनों तक बुखार ते बिलखते बच्चे के साथ सीफिया हनीफ वहीं किसी तरह दिन काटे अंत में पाटी नाम की एक महिला ने इन्हें सहारा दिया और आठ महीने तक अपने घर पर रखा।
आगे जाकर सीफिया हनीफ को एक स्थानीय अस्पताल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गयी। अपने पूरे संघर्ष के दौरान उन्होंने विधावाओं के दुक-दर्द को क़रीब से समझा। सलिए उनकी मदद करने के लिए अब वो छोटी सी नौकरी होने और समें भी दो-दो बच्चों को पालने व पढ़ाने के साथ-साथ पाँच अन्य बेसहारा बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाती हैं। आपको बता दें कि अब सीफिया हनीफ से प्रेरित होकर कई अन्य महिलाएँ भी स्वावलंबी हो रही हैं।
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