जानें, चरणामृत के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

हिन्दू धर्म में हर रोज पूजा-पाठ का विधान है क्योंकि सप्ताह के सातों दिन भिन्न-भिन्न देवताओं की पूजा होती है। हालांकि, घर और मंदिरों में पूजा का विधान भिन्न-भिन्न है। घर में प्रार्थना के अनुसार पूजा की जाती है क्योंकि कित्नु मंदिरों में विधि-विधान से पूजा की जाती है।
जब कभी हम मंदिर जाते हैं और पूजा-प्रार्थना के पश्चात हमें सबसे पहले चरणामृत और फिर प्रसाद दी जाती है। वैसे चरणामृत को लेकर लोगों में भिन्न-भिन्न मत है। आज हम आपको चरणामृत के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे भक्तगण बड़े ही श्रद्धाभाव से ग्रहण करते हैं।
आपको बता दें कि जब हम मंदिर में चरणामृत ग्रहण करते हैं तो उस समय पंडित या पुजारी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं। अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
इस मंत्र का तात्पर्य जगत के पालनहार आराध्य देव विष्णु के चरण का अमृत जल व्यक्ति के समस्त पापों और संकटों का नाश करते हैं। ये चरणामृत औषधि स्वरूप है।
धार्मिक मान्यता अनुसार जो व्यक्ति भगवान् विष्णु के चरणामृत ग्रहण करता है उसका इस माया स्थली पर पुनः जन्म नहीं होता है। वैसे इस चरणामृत में पंचमेवा समेत जल का मिश्रण होता है जो ईश्वर के चरण स्पर्श कर चरणामृत बन जाता है।
इसे ग्रहण करने के समय सर्वप्रथम मस्तक में लगाना चाहिए और फिर उसे ग्रहण करना चाहिए। वहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ताम्र पात्र में रखे जल को ग्रहण करने से समस्त प्रकार के रोग व्याधि दूर होते हैं। अतः मंदिर में चरणामृत अवश्य ग्रहण करें और घर पर ताम्र पात्र का अवश्य इस्तेमाल करें।

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