श्रद्धा और विश्वास इंसान को किस प्रकार से परिवर्तित कर देता हैं

संसार के प्रत्येक कार्य में विश्वास की अति आवश्यकता होती है। मान लीजिए आप पूजा करने के लिए मंदिर में जाते हैं, यदि मंदिर की मूर्तियों के प्रति श्रद्धा और विश्वास नहीं है, तो आपका पूजा करने जाना व्यर्थ है। मंदिर का निर्माण इसलिए हुआ है कि लोगों के मन में ईश्वर के प्रति आस्था उत्पन्न हो। नास्तिक भी एक बार मंदिर में प्रवेश हो जाए तो उसका भी मन शांत हो जाता है।


लोगों की निष्ठा और भावना ही मुख्य होती है और उन्हें देखकर नास्तिक के मन में यह विचार अवश्य उत्पन्न होगा कि यह भगवान का घर है। एक दूसरे पर विश्वास करने के पीछे हिंदू लोगों का विचार यह होता है कि प्रत्येक प्राणी के मन में ईश्वर का निवास होता है, भले ही वह प्राणी हो, मनुष्य हो, सद्बुद्धि वाला हो, गुणवान हो, या पापी।
उदाहरण के तौर पर एक व्यवसायी के पास एक चोर आया, और बोला सेठजी मुझे अपने पास नौकरी पर रख लो। व्यवसायी ने उसके चेहरे की ओर देखा, उसे जानता भी था कि वह चोर है। फिर भी मुस्कुरा कर बोला, ठीक है तुम कल से नौकरी पर आ जाना। वह चोर उस दिन अपने घर चला गया और मन ही मन विचार कर रहा था, कि अब तो मेरी चांदी रहेगी। जब भी मौका मिलेगा अपने पसंद की चीज चुरा लूंगा। भला इतने बड़े व्यापार में थोड़ी बहुत की चोरी उसे कैसे मालूम होगी।
दूसरे दिन काम पर पहुंचते ही सेठ बोला, भाई! दिखने में तो तुम बहुत सरीफ हो, हमारे यहां ईमानदारी को ही प्राथमिकता देते हैं। उस लड़के ने हां में सिर हिलाया। बस फिर क्या था, सेठ ने कहा, तुम मेरी गद्दी पर बैठ कर काम-काज संभालो, मैं किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं। यह सुनते ही वह लड़का मन ही मन बहुत खुश हुआ। सेठ के जाने के बाद उसने गल्ले की तरफ हाथ बढ़ाया, उसी समय उसके मन में ईश्वर के प्रति विचार आने लगे, और उसके मन में यह ख्याल आया कि वह व्यवसायी इमानदारी से सब कुछ छोड़ कर गया हैं, तो मैं चोरी कैसे कर लूं। आशय यही है कि लोग आज भी आंख बंद करके एक दूसरे के प्रति श्रद्धा का भाव और विश्वास रखते हैं।

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