जानिए किस भगवान को काशी का कोतवाल कहा जाता है

देवों की नगरी काशी को पवित्र और धार्मिक नगरी कहा जाता है। इस नगर के कोतवाल स्वंय भगवान शिव है। इस बारे में धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्म हत्या लगने के बाद भगवान् शिव के भरैव रूप ने इसी नगरी में आकर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। इसके अलावा काशी मोक्ष के भी जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर जिस किसी मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है उसको स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आइये इस धार्मिक सम्बोधन के पीछे की कथा जानते हैं।
कथा -
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक बार त्रिदेव यानी की भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही थी कि तीनों में श्रेष्ठ कौन है ? इस बात को लेकर त्रिदेव ने देव गणों की एक सभा बुलाई और सभा में निर्णय लेने को कहा गया। इस सभा में सभी देव गणों ने मिलकर त्रिदेव में श्रेष्ठ कौन है का उत्तर ढूंढा और फैसला सुनाया।
हालांकि, देवगणों के इस फैसले को शिव जी और विष्णु जी ने स्वीकार कर लिया किन्तु ब्रह्मा जी इस फैसले से प्रसन्न नहीं हुए और उन्होंने शिव जी के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया।
जिससे शिव जी क्रोधित हो उठें और फिर उनके क्रोध की अग्नि से भैरवजी का प्रादुर्भाव हुआ। इनके हाथ में एक छड़ी थी और इनका वाहन कुत्ता था। भैरव देव को कई नामों से जाना जाता है जिन्हें महाकालेश्वर, कालभैरव आदि कहा जाता है।
उस क्षण भैरव जी ने ब्रह्मा जी के पांच मुख में से एक मुख को अपने शस्त्रों से खंडित कर दिया। तभी से ब्रह्मा जी के चार मुख है। इसके पश्चात् ब्रह्मा जी को अपने भूल का एहसास हुआ और उन्होंने तत्क्षण शिव जी से क्षमा याचना की।
इसके पश्चात भगवान् भैरव देव पश्चाताप हेतु काशी आ गए और यहीं पर उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। इसलिए भैरव देव को काशी का कोतवाल कहा जाता है।
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