हिमाचल प्रदेश के चंबा शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवान भोले मणि के रूप में दर्शन देते हैं। इसी कारण मणिमहेश कहा जाता है। धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है। हजारों साल से श्रद्धालु रोमांचकयात्रा पर आ रहे हैं। चंबा को शिव भूमि के नाम से भी जाना जाता है l
मान्यता है कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं। मणिमहेश यात्रा कब शुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग विचार हैं, लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं। 13,500 फुट की ऊंचाई पर किसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है। आइए मणिमहेश यात्रा के बारे में जानें कुछ रोचक तथ्य l
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हिमालय की धौलाधार, पांगी और जांस्कर शृंखलाओं सेघिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी से श्री राधाष्टमी तक लाखों श्रद्धालु पवित्र मणिमहेश झील में स्नान के बाद कैलाशपर्वत के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। पहाड़ों और नालों से होते हुए मणिमहेश झील तक पहुंचने का रास्ता रोमांच से भरपूर है l
मणिमहेश यात्रा को अमरनाथ यात्रा के बराबर माना जाता है। जो लोग अमरनाथ नहीं जा पाते हैं वे मणिमहेश झील में पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं। अब मणिमहेश झील तक पहुंचना और भी आसान हो गया है। यात्रा के दौरान भरमौर से गौरीकुंड तक हेलीकॉप्टर की व्यवस्था है और जो लोग पैदल यात्रा करने के शौकीन हैं उनके लिए हड़सर, धनछो, सुंदरासी, गौरीकुंड और मणिमहेश झील के आसपास रहने के लिए टेंटो की व्यवस्था भी है l
शैवतीर्थ स्थल मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के भरमौर में है। मान्यता के अनुसार, 550 ईस्वी में भरमौर मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी था। मणिमहेश कैलाश के लिए भी बुद्धिल घाटी जो भरमौर का भाग है, से होकर जाना पड़ता है। हिमाचल सरकार ने इस पर्वत को टरकॉइज माउंटेन यानी नीलमणि कहा है। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। मान्यता है कि कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म हैं जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीले रंग में रंगती हैं।
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