गुज़रे दशक में ऐसी बहुत सी फिल्में बनी हैं जो भले ही बॉक्स ऑफिस पर ना चली हों या उन्हें किसी क्रिटिक से वाह वाही ना मिली हो, लेकिन वो फिल्में फिर भी हटके थीं क्योंकि उनमें कुछ ऐसा दिखाने या करने की कोशिश की गई थी जो अब तक किसी ने कोशिश नही की थी।
- हैदर
शेक्सपियर के उपन्यास "हैमलेट" पर आधारित इस फ़िल्म ने कश्मीर घाटी को एक कश्मीरी युवा की नज़र से दिखाया है। विशाल भारद्वाज ने इस फ़िल्म में कश्मीर की स्थित को एक अलगनजरिये से पेश किया है। घाटी पर बनी अब तक कि सभी फिल्मों में सरकार से अनुमति लेकर ही तथ्य दिखाए गए थे लेकिन इस फ़िल्म में कश्मीरियों के दिलों में इंडियन आर्मी का भय दर्शाया गया है। हैदर पिछले दशक की एक बहुत महत्वपूर्ण फ़िल्म है जो कश्मीर की मुश्किल सियासी परिस्थितियों की सच्चाई सामने लाती है। विशाल भरद्वाज का ये एक साहसी कारनामा था जो बॉक्स ऑफिस पर भी खूब चला था।
2. डेली बेली
'डेली बेली' का नाम आते ही सबको 'भाग डी के बोस' गाना याद आता है पर ये फिल्म उस गाने के अलाव ही बहुत कुछ थी। एक डार्क कॉमेडी फिल्म जिसमें पहली बार वयस्क कॉमेडी का इस्तमाल किया गया था। भारतीय लोग बहुत से मामलों में दोहरे मापदंड रखते हैं। जो चीजें वे हॉलीवुड फिल्मों में शौक से देखते हैं वही अगर भारतीय फिल्मों में आ जाये तो हो - हल्ला हो जाता है। यही इस फिल्म के साथ हुआ , लोगों ने कड़ी निंदा की लेकिन इसे इतना देखा कि ये एक हिट फिल्म रही। फिल्म की सभी पर्फोर्मन्सेस लाजवाब थीं चाहे वो इमरान खान हों, विजय राज या वीर दास। एक वयस्क कॉमेडी से सजी फिल्म को इतना बेहतरीन तरीके से निर्देशित किया गया था कि भले ही लोगों ने इसकी निंदा की लेकिन ये फिल्म युवा वर्ग की सच्चाई को बहुत ही बेबाक तरीके से पेश करती है और कहीं नकली नहीं लगती।
3. इंग्लिश विंग्लिश
एक मध्यम उम्र की महिला का मुख्य रोल एक महिला द्वारा निर्देशित फिल्म में , ये एक ऐसा कॉम्बिनेशन है जो मिलना बहुत ही दुर्लभ है। और इसी सामाजिक मानसिकता को तोड़ने की कोशिश की है गौरी शिंदे ने अपनी इस फ़िल्म में। फ़िल्म में मुख्य किरदार में स्वर्गीय श्रीदेवी को लिया गया क्योंकि ये रोल शायद उनसे बेहतर कोई नही निभा सकता था। ये फ़िल्म आपके दिल को हिला देती है और साथ ही आपके चेहरे पर एक मुस्कान भी ले आती है। इंग्लिश विंग्लिश एक ऐसी फ़िल्म है जिससे शायद हर भारतीय माँ रिलेट करेंगी और हम सबको एक प्रायश्चित की भावना देकर जाएगी। इस फ़िल्म की सबसे अच्छी बात ये है कि इसने पुरुष प्रधानता, लिंगभेद और असभ्यता को बहुत ही नॉर्मल और रोज़मर्रा होने वाली चीजों की तरह दिखाया गया है। ये फ़िल्म कोई भाषण नही देती मगर फिर भी मुद्दे की बात बहुत आसानी से समझा जाती है। कोई नहीं सोच सकता था कि एक दो बच्चों की अंग्रेजी न जानने वाली माँ के आंतरिक द्वंद्व पर जीत पाने की कहानी कहने वाली ये फिल्म इतनी सफल होगी।
4. लुटेरा
विक्रमादित्य मोटवानी की ये फ़िल्म एक ऐसी रोमांटिक फिल्म है जिसे इतने बड़े स्केल पर इतनी बारीकी और महत्वकांक्षा के साथ बनाया गया है कि लगता है मानो वरुण (रणवीर सिंह) और पाखी (सोनाक्षी सिन्हा) की प्रेम कहानी का उदय किसी लोक कथा से हुआ हो। और ये पूरी तरह गलत भी नहीं है क्योंकि फ़िल्म की प्रेरणा ओ हेनरी की प्रसिद्ध कहानी "लास्ट लीफ" से ली गई है। सालों बाद हिंदी सिनेमा में ऐसी लव स्टोरी देखने को मिली जहाँ खामोशी, शब्दों से ज़्यादा बात करती नज़र आई। लुटेरा कोई कन्वेंशनल बॉलीवुड फिल्म नही है , हाँ इसे आप एक क्लासिक ज़रूर कह सकते हैं जिसे गुरुदत्त भी स्वीकृति दे देते । ये फिल्म ज्यादा सफल नहीं हुई क्योंकि ऐसे एटीएम बलिदान वाली प्रेम कहानियां आजकल के युवा वर्ग को पचती नहीं हैं पर इस फिल्म की खूबसूरती हर एक तरह से लाजवाब है चाहे वो रणवीर सिंह और सोनाक्षी का अभिनय हो या मन को छूटा हुआ संगीत।
5.गो, गोआ, गॉन
ये फ़िल्म राज और डी के द्वारा लिखित एक हॉरर कॉमेडी है।ज़ॉम्बीज पर भारत में बनी शायद ये पहली फ़िल्म थी, और इस पहली कोशिश को खूब अच्छी तरह से निभाया गया था। सैफ अली खान की उम्दा परफॉरमेंस , बेहतरीन कॉमेडी और कटाक्ष से सजी ये फ़िल्म हर मायने में न्याय करती है। सभी एक्टर्स ने अच्छी परफॉरमेंस दी है लेकिन विजेता हैं इस फ़िल्म के लेखक जिनकी मज़ेदार और हाज़िरजवाब लेखन ने फ़िल्म को विशेष बना दिया। फिल्म में हॉरर, कॉमेडी और एक्शन का इतना सटीक मिश्रण है कि आप कहीं उकताते नहीं हैं। दोस्तों के साथ देखने में तो इस फिल्म का एक अलग ही मज़ा है। अफ़सोस कि ज़ॉम्बीज को लेकर फिर कभी कोई फिल्म नहीं बनी। इस फिल्म के सीक्वेल की भी कई बार बात चली लेकिन कुछ हुआ नहीं। हालांकि हम बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं कि ऐसी मजेदार और हटके फिल्म फिर आये।
क्या आप भी इस लिस्ट में अपनी किसी पसंदीदा फिल्म का नाम डालना चाहते हैं जो सबसे अलग थी और समय से आगे भी।
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